श्राद्ध: Shradh kya hai aur kyu karte hai?

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श्राद्ध क्या है? श्राद्ध इन हिंदी | पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष क्या है ?

वार्षिक श्राद्ध

हिंदू मान्यताओ के अनुसर एक आत्मा को उसके जीवन के आधार पर नर्क या स्वर्ग मिलता है। अगर व्यक्ति ने जीवन में अच्छे कर्म किए हैं तो उसे स्वर्ग और बुरे कर्मों के लिए नर्क मिलता है। लेकिन नर्क या स्वर्ग पहुंचने से पहले आत्मा कई जगहों पर भटकती है।अच्छे कर्मों के आधार पर आत्मा को देवयोनि या मानव जीवन मिलता है। अच्छे कर्म कर मोक्ष को प्राप्त करने वाली आत्मा को देवयोनि मिलती है लेकिन वहीं दूसरी और अभी भी अपनी इच्छाओं के घेरे में फंसी हुई आत्मा फिर से मानव जीवन लेने के लिए मजबूर हो जाती है ताकि वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकें। लेकिन देवयोनि और मानव जीवन के बीच में प्रेत योनि होती है, जिस में से एक आत्मा को बाहर निकलने में बहुत समय लग जाता है। ये वो समय होता है जब आत्मा अपना मारा हुआ शरीर छोड़ देती है पर धरती में भटकती रहती है। जो आत्माएं प्रेत योनि से बाहर नहीं निकल पाती हैं उनके लिए श्राद्ध किये जाते हैं। इन आत्माओं को उनके अंतिम चरण तक पहुंचने के लिए पितृ पूजा की जाती है। भाद्रपद की पूर्णिमा से 16 दिनों तक अश्रि्वन कृष्ण अमावस्या तक का श्राद्ध कहा जाता है। श्राद्ध 2023 प्रारंभ तिथि 29 सितंबर 2023 और श्राद्ध समाप्ति तिथि 14 अक्टूबर 2023 है। शास्त्रों के अनुसार देवकार्यों से पहले पितृ कार्य करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि श्राद्ध से पितृ ही नहीं बल्कि देव भी तृप्त हो जाते हैं।

श्राद्ध विधि | श्राद्ध कार्यक्रम | पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष | श्राद्ध पितृ पक्ष

वार्षिक श्राद्ध विधि | वार्षिक श्राद्ध विधि pdf | वर्ष श्राद्ध

  1. पिंडदान – पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है। मान्यता है कि मृत्यु के बाद जिन लोगों का श्राद्ध और पिंडदान नहीं किया जाता है, उनको दूसरे लोकों में काफी ज्यादा कष्ट और दुखों का सामना करना पड़ता है। यही वजह है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है।
  2. ब्राह्मण भोजन – ऐसा कहा जाता है ब्राह्मण के मुँह से देवता ह्वय को या पितर क्व्य को खाते हैं। पितृ स्मरण मातृ से ही श्राद्ध में आते हैं और भोजन प्राप्त कर के तृप्त होते हैं।

श्राद्ध क्यों करते हैं ? | श्राद्ध का महत्व | पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष क्या है?

पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष आत्माओं को मोक्ष दिलाने के लिए किया जाता है। जो इंसान पूरी तरह से अपने पूर्वजों के लिए पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष करता है उसके पूर्वज उन्हें खुश होकर उन्हें सुख देते हैं – स्मृति का आशीर्वाद देते हैं और पितृ लोक से आगे बढ़कर देवयोनि या मानव जीवन में जाते हैं। जो लोग पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष नहीं करते, उनके पितर प्रेत योनि में ही भटकते हैं, अपने प्रियजनो को श्राप देते हैं जिसे पितृदोष भी कहते हैं।

श्राद्ध का भोजन
श्राद्ध का भोजन

श्राद्ध की शुरुआत किसने की ? श्राद्ध कार्यक्रम

भीष्म जी कहते हैं कि बहुत समय पहले ब्रह्मा जी से एक बहुत ही प्रतापी महर्षि अत्रि उत्पन हुए। उनके वंश में भगवान दत्त का जन्म हुआ, फिर उनके पुत्र निन्नी और फिर उनके पुत्र श्रीमान का जन्म हुआ। श्रीमान बहुत ही बड़े तपस्वी थे, उन्हें कई साल कड़ी तपस्या करके अपने प्राण त्याग दिए थे, इसप्र उनके पिता निनी बहुत ही गुस्सा हुए थे, और उनको अपने धर्म के अनुसर अपने पुत्र श्रीमान का सारा क्रिया करम किया। इसके बाद पितृ पक्ष के चौथे दिन पे समन में देने लायक चीजो को इकाथा करने लग गए। उन्हें श्रीमान के पसंद के फल को भी इकठ्ठा किया और 7 ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें दक्षिण की दिशा में बिठाया और पुत्र के नाम का पिंड दान कराया और फिर भोजन कराया। ये सब ख़त्म होने के बाद उन्हें बहुर पछतावा होने लगा और वो सोचने लगे कि वेदो में शरद देना पुत्र के लिए लिखा है लेकिन मैंने बिना सोचे समझे एक पिता होकर अपने ही पुत्र का पितृपक्ष श्राद्ध कर दिया।

कहीं इसका कोई गलत परिणाम न हो जाए क्योंकि ऐसा आज तक किसी ने नहीं किया है। ये सब सोचते हुए वो महर्षि अत्रि का ध्यान करने लगे, जब अत्रि प्रकट हुए और उन्हें निनी के मन की बात बताई गई उन्हें कहा कि तुमने आज जो किया है उससे मत डरो क्योंकि ये श्राद्ध का नियम ब्रह्मा जी के द्वारा बनाया गया है और नियम के अनुसार श्राद्ध के लिए जल देर से आए भगवान वरुण को याद करना चाहिए, और फिर भगवान अग्नि और सोम को याद करना चाहिए। परमपिता ब्रह्मा ने कुछ देवों की उत्पत्ति की है, जो पित्रो के नाम से ही जाने जाते हैं, जिनका पुष्पन भी कहते हैं और श्राद्ध में उनका भाग निश्चित किया गया है और जो व्यक्ति उनकी पूजा सच्चे मन से करता है, उनके पूर्वजों का नरक से उद्धार हो जाता है, और इस तरह उन्हें ये बात समझाकर अत्री वापसी चले गए।

इसी तरह ऋषियों ने श्राद्ध शुरू कर दिया और धीरे-धीरे सब लोग श्राद्ध करने लग गए।

श्राद्ध का पहला भाग

जब सब लोग श्राद्ध करने लग गए तो सारे देवता परेशान हो गए क्योंकि वे इतना सारा भोजन खत्म नहीं कर पा रहे थे, इस संसार को लेकर सारे देवता ब्रह्मा जी के पास गए, जहां अग्नि देव भी बैठे थे, उनकी संसार देख कर अग्नि देव ने कहा कि आज से भोग का पहला भाग वे खुद खाएंगे और सारे देवता एक साथ बैठकर भोग खाएंगे। ये बात सुनकर सारे देव बहुत प्रसन्न हो गए और तब से श्राद्ध का पहला भाग अग्नि देव को चढ़ाया जाता है।

श्राद्ध का महत्व | श्राद्ध 2023 का महत्व

भीष्म श्राद्ध के महत्व को बताते हैं कि जो लोग कृष्ण पक्ष की प्रति पद यानि कि जो लोग श्राद्ध के पहले दिन की पूजा करते हैं उन्हें बहुत ही सुंदर पत्नी मिलेगी। दूसरे दिन श्राद्ध करने से घर में पुत्री के होने की पूरी संभावना है। तीसरे दिन के श्राद्ध से घोड़े मिलते हैं। चौथे दिन के श्राद्ध से बहुत छोटे छोटे पशु घर आते हैं। 5वें दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति के घर पुत्र के जन्म की पूरी उम्मीद बन जाती है। छठे दिन के श्राद्ध की पूजा से व्यक्ति बहुत सुंदर बन जाता है। 7वें दिन के श्राद्ध से घर की खेती बहुत अच्छी चलती है। 8वें दिन श्राद्ध से व्यापार में बहुत फ़ायदा मिलता है। 9वें दिन के श्राद्ध से यदि घर में घोड़ा है तो उनका स्वस्थ बहुत अच्छा रहता है। 10वें दिन के श्राद्ध से घर में पाली गई गाय को बहुत सुख मिलता है। 11वें दिन के श्राद्ध से बरतन और कपड़ो का फ़ायदा होता है। 12वें दिन के श्राद्ध से घर में हमेशा सोना चांदी का फ़ायदा होता है। 13वें दिन श्राद्ध से व्यक्ति अपने समाज में बहुत इज्जत पाता है, लेकिन 14वें दिन श्राद्ध करने वाले के दिन अकाल मृत्यु का संकट बन जाता है। इसलिए इस दिन को अमावस्या के दिन श्राद्ध करने वाले की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

श्राद्ध का भोजन और कौवे का क्या महत्व है?

एक और मान्यता ये है कि श्राद्ध में निकले गए भोजन को सबसे पहले कौवे को खाना चाहिए वरना इस श्राद्ध करने का फल नहीं मिलता। इसका कारण ये है कि आनंदरामायण की कथा के अनुरूप एक दिन जयंत एक कौवा का रूप लेकर माता सीता के पास गया और जाकर उनके पैरों को बार-बार अपनी तीखी चोंच से नोचने लगा जिसे माता सीता के पैरों से खून बहना लगा। जब भगवान राम की नज़र इस पर पड़ी तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्हें एक बाण पर मंत्र पढ़कर उस कौवे पर मारा गया जिस से जयन्त गभरा गया और उड़ने लगा पर वो बाण से पिचा छुड़ा नहीं पा रहा था। उसने तीर के बचाव के लिए भगवान राम के चरणों की सहायता ली। भगवान राम ने हमें कौवे की एक आंख फोड़ दी और मानव जीवन का वरदान दिया। तब से कहा जाता है कि कौवे अपनी एक आंख से ही देखते हैं।
एक रात श्री राम अपने दरबार में बैठे थे, उनकी सभा से थोड़ी देर में एक अंगूर की भेल पर एक कौवा बैठा हुआ था जो बार-बार श्री राम की तरफ देख कर कांव-कांव कर रहा था, श्री राम को उस कौवे पर दया आ गई और अनहोनी यूज़ अपना पास बुलाया। इतने में कौआ श्री राम के पास आकर बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा। श्री
राम ने कहा कौआ तुम एक ही आंख से देख सकते हो इसके लिए तुम्हें मुझसे क्या चाहिए? कौवे ने कहा श्री राम मेरे ऊपर आपका आशीर्वाद बना रहे मैं इसके अलावा कुछ नहीं चाहता। क्रो के इस विनम्र भाव से श्री राम खुश हुए और उन्हें कहा मेरे वरदान से आज से तुम इस संसार के अतीत, वर्तमान और भविष्य की बातों को तुम जानते रहोगे। गृह प्रवेश के समय अगर तुम किसी की तरफ से निकल जाओगे तो उसे शुभ शगुन मना लिया जाएगा। जब किसी मृत के लिए पिंड दान किया जाएगा, जब तक तुम पिंड को स्पर्श नहीं करोगे तब तक उस मृत को सदगद्दी नहीं मिल सकती इसके अलावा श्राद्ध में बने भोजन को जब तक तुम स्पर्श नहीं करोगे तब तक उसके श्राद्ध कर्म को पूरा नहीं माना जाएगा। . इस वरदान से कौवा बहुत खुश हुआ और उड़ गया। इसलीये श्राद्ध का भोजन कौवे को खिलाना अवकाश मन गया है वर्ना श्राद्ध पूरा नहीं होता।

श्राद्ध के प्रकार

श्राद्ध तीन प्रकार के होते हैं-

नित्य– यह श्राद्ध के दिनों में मृतक के निधन की तिथि पर किया जाता है।

नैमित्तिक– किसी विशेष पारिवारिक उत्सव, जैसे – पुत्र जन्म पर मृतक को याद कर किया जाता है।

काम्य– यह श्राद्ध किसी विशेष मनौती के लिए कृत्तिका या रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है।

श्राद्ध में क्या करना चाहिए?

  1. जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु होती है उस तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए, यदि किसी को तिथि याद न हो तो अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए।
  2. रजस्वला महिलाओं को श्राद्ध का भोजन नहीं बनाना चाहिए।
  3. यदि आप श्राद्ध के दिन घर पर नहीं हैं तो किसी मंदिर में पंडित जी को अपने पित्रों के नाम से दूध, पेड़ और दक्षिणा दे।
  4. श्राद्ध के दिन यदि कोई आपसे भोजन और जल मांगता है तो उसके खाली हाथ न भेजें क्योंकि पितृ आपसे किसी भी रूप में भोजन मांग सकते हैं I
  5. श्राद्ध करने का प्रथम अधिकार सबसे बड़े पुत्र का होता है लेकिन अगर बड़ा पुत्र उपस्थित न हो तो छोटा पुत्र भी श्राद्ध कर सकता है।
  6. यदि किसी का कोई पुत्र न हो तो उसकी विधवा पत्नी का श्राद्ध करवा सकती है।
  7. यदि परिवार में सभी पुत्र अलग-अलग घर में रहते हैं तो सभी पुत्रों को अपने-अपने घर में अपने पितृ का श्राद्ध करना चाहिए।
  8. पुत्र किस अनुपस्थिति में पोते को दादा दादी का श्राद्ध करवाना चाहिए, लेकिन अगर पोता भी ना हो तो भाई, भतीजे या उनका पुत्र भी श्राद्ध करवा सकते हैं।
  9. यदि किसी व्यक्ति का कोई रिश्ता नहीं है तो उनकी बेटी का पुत्र यानि उनका दोहता भी नाना – नानी का श्राद्ध करवा सकता है।
  10. पुराणों के अनुसर श्राद्ध किसी योग्य ब्राह्मण के द्वार ही संपन्न कराना चाहिए तथा ब्राह्मण को अपने पितरों की पसंद का भोजन, वस्त्र तथा दक्षिणा देनी चाहिए।
  11. श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले पित्रों के लिए तर्पण करवाना बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसी मान्यता है कि पितृ जिस लोक में रहते हैं वहां पानी की बहुत कमी होती है तो तर्पण करवाने से पितरों की प्यास बुझती है।
  12. ऐसी मान्यता है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है, जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनका श्राद्ध पंचमी के दिन किया जाता है।
  13. जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई है, किसी दुर्घटना में या आत्महत्या से, उनका श्राद्ध चतुर्दर्शी के दिन किया जाता है।
  14. साधु सन्यासी का श्राद्ध तिथि को बताया जाता है और बच्चो का श्राद्ध त्रयोदशी को दिया जाता है I
  15. श्राद्ध के दिन में 12 बजे के बाद बुरे कर्म करने का प्रयास करें तो उसे अति उत्तम मन जाता है।
  16. श्राद्ध वाले दिन घर की महिलाओं को सुबह जल्दी नहाकर भोजन की जगह को गोबर और गंगाजल से साफ करना चाहिए, इसे वे स्थान पवित्र हो जाता है।
  17. श्राद्ध के दिन पित्रों के स्वागत के लिए घर के द्वार पर रंगोली बनानी चाहिए।
  18. श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग तथा दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी मन गया है पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिया जाए तो वह अक्षय त्रिप्तकारक होता है पित्रों के लिए पिंड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हो तो और भी श्रेष्ठ मन जाता है।
  19. श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय लाभ के लिए भोजन दोनों हाथों से पकड़ कर लेना चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
  20. ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर और व्यंजनों की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए क्योंकि पितृ तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण भोजन मौन रहकर भोजन करें।
  21. श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना अवशयक है जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है उसके घर में पितृ भोजन नहीं करते श्राप देकर लौट जाते हैं।
  22. श्राद्ध में तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है वास्तव में पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं कुशा एक प्रकार की घास राक्षसों से बचते हैं।
  23. यदि आपकी बहन या बेटी आपके शहर में रहती हैं तो उन्हें भी आप उस दिन अमंत्रित करें, ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य ऐसा नहीं करता, उसके यहां पितृ के साथ देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते I

श्राद्ध कर्म विधि मंत्र | पितृ श्राद्ध मंत्र

श्राद्ध कर्म विधि मंत्र में सबसे पहले पंचबली कर्म ले, जिसके लिए पहला संकल्प ले ले कि एपी किस कारण ये पंचबली कर्म कर रहे हैं। पितृ पक्ष के दौरान, जो पंद्रह दिनों तक चलता है, लोग अपने उन पूर्वजों के लिए एक विशेष अनुष्ठान करते हैं जिसे श्राद्ध कहा जाता है। हर किसी के लिए अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए यह अनुष्ठान करना, विशेषकर पंचबली भोग लगाना महत्वपूर्ण है I ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज अपने जीवित परिवार के सदस्यों को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद देंगे।
भूत यज्ञ एक विशेष अनुष्ठान है जहां हम विभिन्न जीवित प्राणियों को खुश करने का प्रयास करते हैं। हम भोजन को केले के पत्तों या एक बड़ी प्लेट पर पांच अलग-अलग स्थानों पर रखते हैं। हम गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी को उड़द-दाल और दही से बने केक चढ़ाते हैं। हम अलग-अलग प्रार्थनाएँ करते हैं और उनमें से प्रत्येक को भोजन का एक हिस्सा बिना तोड़े, चढ़ाते हैं।

पंचबली | श्राद्ध कर्म विधि मंत्र |श्राद्ध कर्म विधि मंत्र pdf

1- गौ बली अर्थात- पहला भोग पवित्रता की प्रतीक गाय माता को खिलाएं।
मंत्र
ॐ सौरभेयः सर्वहिताः, पवित्राः पुण्यराशयः।।
प्रतिगृह्णन्तु में ग्रासं, गावस्त्रैलोक्यमातरः॥
इदं गोभ्यः इदं न मम्।।

2- कुक्कुर बली अर्थात- दूसरा भोग कत्तर्व्यष्ठा के प्रतीक श्वान (कुत्ता) को खिलाएं।
मंत्र
ॐ द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ, वैवस्वतकुलोद्भवौ ।।
ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि, स्यातामेतावहिंसकौ ॥
इदं श्वभ्यां इदं न मम ॥

3- काक बली अर्थात- तीसरा भोग मलीनता निवारक काक (कौआ) को खिलाएं।
मंत्र
ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या, याम्या वै नैऋर्तास्तथा ।।
वायसाः प्रतिगृह्णन्तु, भुमौ पिण्डं मयोज्झतम् ।।
इदं वायसेभ्यः इदं न मम ॥

4- देव बली अर्थात- चौथा भोग देवत्व संवधर्क शक्तियों के निमित्त- (यह भोग किसी छोटी कन्या या गाय माता को खिलाया जा सकता है)
मंत्र
ॐ देवाः मनुष्याः पशवो वयांसि, सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः।।
प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता, ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्॥
इदं अन्नं देवादिभ्यः इदं न मम्।।

5- पिपीलिकादि बली अर्थात- पांचवां भोग श्रमनिष्ठा एवं सामूहिकता की प्रतीक चींटियों को खिलाएं।
मंत्र
ॐ पिपीलिकाः कीटपतंगकाद्याः, बुभुक्षिताः कमर्निबन्धबद्धाः।।
तेषां हि तृप्त्यथर्मिदं मयान्नं, तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु॥
इदं अन्नं पिपीलिकादिभ्यः इदं न मम।।


श्राद्ध कर्म विधि मंत्र
श्राद्ध कर्म विधि मंत्र

त्रिपिंडी श्राद्ध कब करें ? त्रिपिंडी श्राद्ध pdf | त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व

त्रिपंडी श्राद्ध घर में सुख शांति और झगड़े को कम करने के लिए करवाया जाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश जी की पूजा त्रिपंडी श्राद्ध में की जाती है। तीनो देवो की एक साथ पूजा करवाने से पित्रों की आत्मा दुख और परेशानी से दूर होती है। त्रिपंडी श्राद्ध को काम्या श्राद्ध भी कहा जाता है। ये श्राद्ध परिवार की समस्त आत्मा की समृद्धि के लिए किया जाता है। आत्माओ की शांति के लिए त्रिपंडी पूजा की जाती है। इस पूजा में 3 पीडि की आत्मा को याद किया जाता है, अगर 3 पीडि में कोई भी स्वर्गवासी हो गया है और उनकी मुक्ति नहीं हो सकती है उसके लिए त्रिपांडी शरद को जरूर करना चाहिए। घर का कोई भी बड़ा पुरुष इसे करवा सकता है। ऐसे कोई पूर्वज जिनकी आपको जानकारी नहीं है और उनके निधन के बुरे समय के बारे में उनका श्राद्ध नहीं निकला है, ऐसी आत्मा भी आने वाली पीड़ी को परेशान करती है, ऐसी आत्माओ के लिए त्रिपंडी पूजा करके अनंत आत्माओ के स्थ परम लोक में भेजा जाता है. परिवार के मृत लोगो का साल में 2 श्राद्ध निकलना अवशक होता है और अगर ऐसे में कोई पूर्वज का कई वर्ष तक श्राद्ध ना किया गया हो तो वे संकट में रहते हैं। जब आप श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं तो अपने पूर्वजो को पारंपरिक रूप से बुराई, शाकिनी और डाकिनी से, भूत प्रेत की यातनाओं से मुक्त करने में सहायता करते हैं और आपके पूर्वज देवता बनकर आपको आशीर्वाद देते हैं। वे आपके आने वाली पीडिय़ों को सदा आशीर्वाद देते हैं।

कोई भी व्यक्ति मृत्यु के 13 दिन बाद यमलोक के लिए प्रस्थान कर सकता है। आत्मा को यमपुरी तक जाने के लिए 17 दिन लगते हैं। इसके बिन 11 माहिनो के लिए आत्मा यात्रा करती है केवल 12 माहिनो में आत्मा यमराज के दरबार में प्रवेश करती है। ग्रंथ कहते हैं इन 11 माहिनो की अवधि में प्राण की आत्मा को भोजन और पानी नहीं मिलता है, ऐसे में परिवार के दुखों को आत्मा की प्यास और भूख को संतुष्टि के लिए पिंड दान और तर्पण किया जाता है। जब तक वो आतम यमराज के दरबार में नहीं पहुंच पाती है जब तक नियम के अनुसार पिंड दान करना जरूरी है, यही कारण है कि श्राद्ध करना बहुत जरूरी है। यदि मान शांत ना रहता हो, परिवार में किसी की असमान मृत्यु हो, शादी ना हो रही हो या संतान ना हो रही हो ऐसी समस्याओं से बचने के लिए त्रिपंडी श्राद्ध किया जाता है।

त्रिपिंडी श्राद्ध कहां करना चाहिए ? त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व

त्रिपंडी श्राद्ध में तीन देव- ब्रह्मा जी, विष्णु और महेश जी की एक साथ पूजा की जाती है और इसे त्रिपंडी श्राद्ध के रूप में पूजा जाता है, इसे किसी पवित्र नदी के किनारे जैसी गंगा, यमुना के किनारे पर रखा जा सकता है। है. त्रिपंडी श्राद्ध के लिए नासिक में त्र्यंबकेश्वर त्रिपंडी श्राद्ध के लिए सबसे पवित्र स्थान मIनI जाता है जो कि शिव के 12 ज्योतिलिंग में से एक है, दूसरा स्थान मोक्षगायनी काशी में है, { त्रिपिंडी श्राद्ध वाराणसी } मान्यता है कि यहां त्रिपंडी श्राद्ध करने से जिन लोगों की अचानक मृत्यु होती है उन्हें शांति मिलती है, पिशाचमोचन कुंड या विमोल्दुत कुंड, प्राचीन कांशी में करोड़ कुंड होते हैं जिनमें से ये एक है। पिशाचमोचन कुंड की मान्यता है कि यहां पिंड दान या जाल करने से अकाल मृत्यु प्राप्त हुए आत्मा को मोक्ष मिलता है, यहां एक पीपल का पेड़ है। कहते हैं कि अकाल मृत्यु वाली आत्मा को यहीं विश्राम दिया जाता है। त्रिपंडी श्राद्ध की विशेष बात ये है कि इस श्राद्ध में पूर्वजो का नाम या गोत्र का उचारण नहीं किया जाता है। त्रिपंडी श्राद्ध से हर असंशुत आत्मा को मोक्ष मिलता है और वे परमलोक को जाती है, ये पितृदोष का सबसे सही तरीका है। जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष है, त्रिपंडी श्राद्ध का उपयोग करना बहुत जरूरी है। परिवार का कोई भी पुरुष त्रिपंडी श्राद्ध करवा सकता है लेकिन एक अकेली महिला इस अनुष्ठान को नहीं करवा सकती।

त्रिपिंडी श्राद्ध सामग्री लिस्ट

त्रिपिंडी श्राद्ध की सामग्री में ताम्र धातू से निर्मित ३ कलश, पुर्णपात्र, गंगाजल, गाय का दूध। आसन, अगरबत्ती, रक्षा सूत्र, जनेऊ, रुद्राक्ष माला, फूल माला।

नारायण – नागबली त्रिपिंडी श्राद्ध

नारायण बलि श्राद्ध उन पित्रों के लिए होता है जिनका हमें नाम याद है। ये एक ही प्रेत की सद्गद्दी के लिए नारायण बलि श्राद्ध किया जाता है। नारायण बलि में भगवान नारायण का पूजन होता है, जिसका एकादश पंचबली होता है, एकादश पिंड बंटते हैं, एकादश श्राद्ध होता है। नारायण बलि श्राद्ध साल में एक बार अवश्य करना चाहिए।

नान्दीमुख श्राद्ध

संस्कृत व्याकरण में “नंदी” शब्द मूल शब्द “नंद” में “घय” प्रत्यय जोड़ने से बना है। “नंद” का अर्थ है खुश और संतुष्ट रहना। जब हम अच्छे कार्य करते हैं तो हमारे पूर्वज और देवता प्रसन्न होते हैं। इसीलिए विष्णु पुराण में कहा गया है कि हमें कोई भी अच्छा काम करने से पहले अपने पितरों की पूजा करनी चाहिए। इसे नंदी श्राद्ध या अभ्युदय श्राद्ध कहा जाता है। यह एक अनुष्ठान है जिसे हम किसी भी महत्वपूर्ण कार्य से पहले अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए करते हैं। ऐसा करने से हमें कोई दुर्भाग्य या परेशानी नहीं होती। हम कोई भी शुभ कार्य या अनुष्ठान निश्चिंत होकर कर सकते हैं। यज्ञ, विवाह या अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम करने से पहले नंदी श्राद्ध करने की सलाह दी जाती है। यदि हमारे माता-पिता या दादा-दादी जीवित हैं तो हम उनके लिए नंदी श्राद्ध नहीं करते हैं। हम इसे केवल अपने पूर्वजों के लिए करते हैं जिनका निधन हो चुका है। हम अनुष्ठान में कुशा घास का उपयोग करते हैं और इसे सुबह करना सबसे अच्छा है। हम इस अनुष्ठान में कुछ शब्दों या तिलों का प्रयोग नहीं करते हैं। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, “नंदी” शब्द का अर्थ समृद्धि या प्रगति है। इसलिए, जब हम कुछ अच्छा या महत्वपूर्ण करना चाहते हैं, तो अपने पूर्वजों और देवताओं का सम्मान करने के लिए “नंदीमुख श्राद्ध” नामक एक विशेष समारोह करना महत्वपूर्ण है। इस समारोह से उन्हें ख़ुशी होती है और वे हमें आशीर्वाद देते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी ने एक सुंदर घर बनाया है, तो उसे नए घर में सौभाग्य और शांति लाने के लिए गृह प्रवेश के दौरान नांदीमुख श्राद्ध करना चाहिए। यह सिर्फ एक उदाहरण है, लेकिन किसी भी अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रम को करने से पहले, अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान दिखाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए इस समारोह को करना महत्वपूर्ण है। ऐसा करके हम अपने जीवन में प्रगति कर सकते हैं और अपने पूर्वजों को गौरवान्वित कर सकते हैं। यह उन्हें धन्यवाद कहने और उन्हें यह दिखाने जैसा है कि हम अच्छा कर रहे हैं। इसलिए, जब भी हम कुछ विशेष करना चाहते हैं, जैसे शादी करना या बच्चा पैदा करना, तो हमें यह सुनिश्चित करने के लिए नांदीमुख श्राद्ध करना चाहिए कि सब कुछ सुचारू रूप से चले। इस समारोह को लेकर कुछ लोगों के मन में संदेह या गलतफहमी हो सकती है, लेकिन यह अपने पूर्वजों से जुड़ने और अपना आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। इसलिए, यदि हम एक सफल और खुशहाल घटना चाहते हैं, तो उससे पहले नांदीमुख श्राद्ध करना महत्वपूर्ण है। मेरा तो यही मानना ​​है और हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है।

नान्दीमुख श्राद्ध विधि |श्राद्ध कर्म विधि pdf download

1. इस श्राद्ध में “स्वधा” के स्थान पर “स्वाहा” शब्द का उच्चारण किया जाता है।
2. इस संबंध में सभी कार्य सव्य (दक्षिण यज्ञोपवीत) के साथ करने चाहिए।
3. नंदीश्राद्ध में कुश की जगह जड़ रहित दर्भा लेना चाहिए। 
4. यग्मा-ब्राह्मण, यग्मा-धर्व, सभी को जोड़े के रूप में लेना चाहिए। 
5. इस कार्य में या तो यजमान उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठता था और ब्राह्मण पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठता था, अथवा यजमान पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठता था और ब्राह्मण उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठता था।
6. इस श्राद्ध में पिंड के लिए दही, शहद, आलूबुखारा, अंगूर और आंवले का उपयोग किया जाता है। 7. समाधान यह है कि प्रथम विभक्ति को अंतिम स्थान पर रखा जाए।
8. उच्चारण के संबंध में कहीं भी नाम और गोत्र का उच्चारण नहीं किया जाता है। गोत्र के स्थान पर “कश्यप” उच्चारण किया जाता है गोत्र और नाम के स्थान पर इसका उच्चारण “नारायण” किया जाता है।
9. इस श्राद्ध में लाल फूलों की माला का प्रयोग नहीं किया जाता है। मालती, मल्लिका, केतकी, कमल स्वीकार्य हैं।
10. इस श्राद्ध में अपस्वय नहीं होता, न ही तिल और न ही पितृतीर्थ जल का उपयोग होता है।
11. यहां श्राद्ध का एक अंग तर्पण भी नहीं किया जाता।
12. नादिश्रद्धा में व्यक्ति अपने पिता, दादा, परदादा (प्रपितामा) और माता, नाना, परदादा (वृद्धप्रमाता) को याद करता है। वह उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इस श्रेणी में बिना परवन के बचे लोग आते हैं, जिनकी परवन-विषयक कविताएँ देश में नहीं पढ़ी जानी चाहिए।
13. नांदी श्राद्ध पर कपूर आदि से आरती नहीं की जाती।
14. जब नंदी श्राद्ध किया जा रहा हो तो यजमान पत्नी को अपने पति के साथ नहीं बैठना चाहिए, बल्कि अपने आसन से उठकर कहीं और बैठना चाहिए।

भरणी श्राद्ध

पवित्र ग्रंथों के अनुसार, इस श्राद्ध को पवित्र नदियों के किनारे या पवित्र और आकाशीय स्थानों जैसे गया, काशी, प्रयाग, कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य, रामेश्वरम आदि में करने का सुझाव दिया गया है। भरणी नक्षत्र श्राद्ध सामान्य रूप से व्यक्ति की मृत्यु के बाद एक बार किया जाता है, हालांकि ‘धर्मसिंधु’ के अनुसार यह प्रत्येक वर्ष किया जा सकता है। इस अनुष्ठान को बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है इसलिए पालन करने वाले व्यक्ति को अनुष्ठान की पवित्रता को बनाए रखना चाहिए।

हिन्दु धर्म में पुरणों का बहुत ही अधिक महत्तव है। भरणी श्राद्ध और श्राद्ध पूजा के अन्य रूपों के महत्व का उल्लेख कई हिंदू पुराणों जैसे ‘मतिसा पुराण’, ‘अग्नि पुराण’ और ‘गरुड़ पुराण’ में किया गया है और इससे यह पता चलता है कि यह कितना महत्वपूर्ण है।

यह कहा गया है कि भरणी श्राद्ध का गुण गया श्राद्ध के समान ही है इसीलिये इसकी अवहेलना कतई नहीं करनी चाहिये । ‘ इसके अलावा यह माना जाता है कि भरणी तपस्या के दौरान एक चतुर्थी या पंचमी तिथि को पैतृक संस्कार करना एक बहुत ही विशेष महत्व रखता है। महालय अमावस्या के बाद, पितृ श्राद्ध अनुष्ठान के दौरान यह दिन सबसे अधिक मनाया जाता है।

श्राद्ध करने को उपयुक्त

साधारणत: पुत्र ही अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। किन्तु शास्त्रानुसार ऐसा हर व्यक्ति जिसने मृतक की सम्पत्ति विरासत में पायी है और उससे प्रेम और आदर भाव रखता है, उस व्यक्ति का स्नेहवश श्राद्ध कर सकता है।

विद्या की विरासत से भी लाभ पाने वाला छात्र भी अपने दिवंगत गुरु का श्राद्ध कर सकता है। पुत्र की अनुपस्थिति में पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध-कर्म कर सकता है।

नि:सन्तान पत्नी को पति द्वारा, पिता द्वारा पुत्र को और बड़े भाई द्वारा छोटे भाई को पिण्ड नहीं दिया जा सकता।

किन्तु कम उम्र का ऐसा बच्चा, जिसका उपनयन संस्कार न हुआ हो, पिता को जल देकर नवश्राद्ध कर सकता। शेष कार्य उसकी ओर से कुल पुरोहित करता है।

श्राद्ध में क्या नहीं करना चाहिए?

  1. कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में नहीं प्रयुक्त होते- मसूर, राजमा, कोदों, चना, कपित्थ, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन और समुद्रजल से बना नमक।
  2. भैंस, हिरणी, उँटनी, भेड़ और एक खुरवाले पशु का दूध भी वर्जित है पर भैंस का घी वर्जित नहीं है।
  3. श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टिकारक माने जाते हैं।
  4. श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है।
  5. जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है।
    भाद्रपद में ही श्राद्ध क्यों हमारा एक माह चंद्रमा का एक अहोरात्र होता है।
  6. इसीलिए ऊर्ध्व भाग पर रह रहे पितरों के लिए कृष्ण पक्ष उत्तम होता है।
  7. कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनके दिनों का उदय होता है। अमावस्या उनका मध्याह्न है तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी अंतिम दिन होता है। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या को किया गया श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान उन्हें संतुष्टि व ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  8. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पृथ्वी लोक में देवता उत्तर गोल में विचरण करते हैं और दक्षिण गोल भाद्रपद मास की पूर्णिमा को चंद्रलोक के साथ-साथ पृथ्वी के नज़दीक से गुजरता है। इस मास की प्रतीक्षा हमारे पूर्वज पूरे वर्ष भर करते हैं। वे चंद्रलोक के माध्यम से दक्षिण दिशा में अपनी मृत्यु तिथि पर अपने घर के दरवाज़े पर पहुँच जाते है और वहाँ अपना सम्मान पाकर प्रसन्नतापूर्वक अपनी नई पीढ़ी को आर्शीवाद देकर चले जाते हैं। ऐसा वर्णन श्राद्ध मीमांसा में मिलता है। इस तरह पितृ ॠण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध काल में पितरों का तर्पण और पूजन किया जाता है।
  9. भारतीय संस्कृति एवं समाज में अपने पूर्वजों एवं दिवंगत माता-पिता के स्मरण श्राद्ध पक्ष में करके उनके प्रति असीम श्रद्धा के साथ तर्पण, पिंडदान, यक्ष तथा ब्राह्मणों के लिए भोजन का प्रावधान किया गया है। पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं।
  10. प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और दूसरा पितृ पक्ष में। जिस मास और तिथि को पितृ की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उनका दाह संस्कार हुआ है, वर्ष में उम्र उस तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है।
  11. एकोदिष्ट श्राद्ध में केवल एक पितर की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है। इसमें एक पिण्ड का दान और एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। यदि किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथियाँ याद नहीं है, तो वह अमावस्या के दिन ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों का विधि-विधान से पिंडदान तर्पण, श्राद्ध कर सकता है।
  12. इस दिन किया गया तर्पण करके 15 दिन के बराबर का पुण्य फल मिलता है और घर परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में विशेष उन्नति होती है।
  13. यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई है, तो पितृदोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्मशांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करना चाहिए।
  14. सामर्थ्यनुसार किसी सुयोग्य कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से श्रीमद्‌ भागवत पुराण की कथा अपने पितरों की आत्मशांति के लिए करवा सकते हैं। इससे विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
  15. इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश वृद्धि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, धन से बरकत न होना सारी सुख सुविधाओं के होते भी मन असंतुष्ट रहना आदि परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।

मातामह श्राद्ध

मातामह श्राद्ध अपने आप में एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता को व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण किया जाता है।इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें है अगर वो पूरी न हो तो यह श्राद्ध नहीं निकाला जाता।शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी औरत के पिता का निकाला जाता है जिसका पति व पुत्र ज़िन्दा हो अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता।

श्राद्ध में कुश और तिल का महत्त्व

दर्भ या कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना जाता है। यह भी मान्यता है कि कुश और तिल दोनों विष्णु के शरीर से निकले हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्रभाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाग देवताओं का, मध्य भाग मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना जाता है। तिल पितरों को प्रिय हैं और दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाले माने जाते हैं। मान्यता है कि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाये तो दुष्टात्मायें हवि को ग्रहण कर लेती हैं।

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