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16 somvar vrat katha written here in all languages. 16 सोमवार व्रत कथा pdf yaha dekhe.

एक बार भगवान शिव जी पार्वती जी के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक की अमरावती नगर में पहुँचे I उस नगर के राजा ने भगवान शिव का एक विशाल मंदिर बनवा रखा था I शिव और पार्वती उस मंदिर में रहने लगे.एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ! आज मेरी चौसर खेलने की इच्छा हो रही है I’ पार्वती की इच्छा जानकर शिव पार्वती के साथ चौसर खेलने बैठ गए I खेल प्रारंभ होते ही उस मंदिर का पुजारी वहां आ गया I माता पार्वती जी ने पुजारी जी से पूछा – कि हे पुजारी जी! यह बताइए कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी?

ब्राह्मण ने कहा – कि महादेव जी की I परन्तु चौसर में शिवजी की पराजय हुई और माता पार्वती जी जीत गईं I तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया I शिव और पार्वती उस मंदिर से कैलाश पर्वत लौट गए I पार्वती जी के श्राप के कारण पुजारी कोढ़ी हो गया I नगर के स्त्री-पुरुष उस पुजारी की परछाई से भी दूर-दूर रहने लगे I कुछ लोगों ने राजा से पुजारी के कोढ़ी हो जाने की शिकायत की तो राजा ने किसी पाप के कारण पुजारी के कोढ़ी हो जाने का विचार कर उसे मंदिर से निकलवा दिया I उसकी जगह दूसरे ब्राह्मण को पुजारी बना दिया I कोढ़ी पुजारी मंदिर के बाहर बैठकर भिक्षा माँगने लगा I

कई दिनों के पश्चात स्वर्गलोक की कुछ अप्सराएं, उस मंदिर में पधारीं, और उसे देखकर कारण पूछा I पुजारी ने निःसंकोच पुजारी ने उन्हें भगवान शिव और पार्वतीजी के चौसर खेलने और पार्वतीजी के शाप देने की सारी कहानी सुनाई I तब अप्सराओं ने पुजारी से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत्र रखने को कहा I

पुजारी द्वारा पूजन विधि पूछने पर अप्सराओं ने कहा- ‘सोमवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, आधा सेर गेहूँ का आटा लेकर उसके तीन अंग बनाना.फिर घी का दीपक जलाकर गुड़, नैवेद्य, बेलपत्र, चंदन, अक्षत, फूल,जनेऊ का जोड़ा लेकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करना I पूजा के बाद तीन अंगों में एक अंग भगवान शिव को अर्पण करके, एक आप ग्रहण करें I शेष दो अंगों को भगवान का प्रसाद मानकर वहां उपस्थित स्त्री, पुरुषों और बच्चों को बाँट देना I इस तरह व्रत करते हुए जब सोलह सोमवार बीत जाएँ तो सत्रहवें सोमवार को एक पाव आटे की बाटी बनाकर, उसमें घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनाना I फिर भगवान शिव को भोग लगाकर वहाँ उपस्थित स्त्री, पुरुष और बच्चों को प्रसाद बाँट देना I इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से भगवान शिव तुम्हारे कोढ़ को नष्ट करके तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूरी कर देंगे I इतना कहकर अप्सराएं स्वर्गलोक को चली गईं I

पुजारी ने अप्सराओं के कथनानुसार सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया I फलस्वरूप भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका कोढ़ नष्ट हो गया I राजा ने उसे फिर मंदिर का पुजारी बना दिया I वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा करता आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा I

कुछ दिनों बाद पुन: पृथ्वी का भ्रमण करते हुए भगवान शिव और पार्वती उस मंदिर में पधारे. स्वस्थ पुजारी को देखकर पार्वती ने आश्चर्य से उसके रोगमुक्त होने का कारण पूछा तो पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार व्रत करने की सारी कथा सुनाई I

पार्वती जी भी व्रत की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने पुजारी से इसकी विधि पूछकर स्वयं सोलह सोमवार का व्रत प्रारंभ किया I पार्वती जी उन दिनों अपने पुत्र कार्तिकेय के नाराज होकर दूर चले जाने से बहुत चिन्तित रहती थीं I वे कार्तिकेय को लौटा लाने के अनेक उपाय कर चुकी थीं, लेकिन कार्तिकेय लौटकर उनके पास नहीं आ रहे थे I सोलह सोमवार का व्रत करते हुए पार्वती ने भगवान शिव से कार्तिकेय के लौटने की मनोकामना की I व्रत समापन के तीसरे दिन सचमुच कार्तिकेय वापस लौट आए I कार्तिकेय ने अपने हृदय-परिवर्तन के संबंध में पार्वतीजी से पूछा- ‘हे माता! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया था, जिससे मेरा क्रोध नष्ट हो गया और मैं वापस लौट आया?’ तब पार्वतीजी ने कार्तिकेय को सोलह सोमवार के व्रत की कथा कह सुनाई I

कार्तिकेय अपने एक ब्राह्मण मित्र ब्रह्मदत्त के परदेस चले जाने से बहुत दुखी थे I उसको वापस लौटाने के लिए कार्तिकेय ने सोलह सोमवार का व्रत करते हुए ब्रह्मदत्त के वापस लौट आने की कामना प्रकट की I व्रत के समापन के कुछ दिनों के बाद मित्र लौट आया I ब्राह्मण ने कार्तिकेय से कहा- ‘प्रिय मित्र! तुमने ऐसा कौन-सा उपाय किया था जिससे परदेस में मेरे विचार एकदम परिवर्तित हो गए और मैं तुम्हारा स्मरण करते हुए लौट आया?’ कार्तिकेय ने अपने मित्र को भी सोलह सोमवार के व्रत की कथा-विधि सुनाई I ब्राह्मण मित्र व्रत के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ, उसने भी व्रत किया I

सोलह सोमवार व्रत का समापन करने के बाद ब्रह्मदत्त विदेश यात्रा पर निकला I वहां नगर के राजा राजा हर्षवर्धन की बेटी राजकुमारी गुंजन का स्वयंवर हो रहा था I वहां के राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि एक हथिनी यह माला जिसके गले में डालेगी, वह अपनी पुत्री का विवाह उसी से करेगा I

ब्राह्मण भी उत्सुकता वश महल में चला गया I वहां कई राज्यों के राजकुमार बैठे थे I तभी एक सजी-धजी हथिनी सूँड में जयमाला लिए वहां आई I हथिनी ने ब्राह्मण के गले में जयमाला डाल दी I फलस्वरूप राजकुमारी का विवाह ब्राह्मण से हो गया I

एक दिन उसकी पत्नी ने पूछा- ‘हे प्राणनाथ! आपने कौन-सा शुभकार्य किया था जो उस हथिनी ने राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में जयमाला डाल दी I’ ब्राह्मण ने सोलह सोमवार व्रत की विधि बताई I अपने पति से सोलह सोमवार का महत्व जानकर राजकुमारी ने पुत्र की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया I निश्चित समय पर भगवान शिव की अनुकम्पा से राजकुमारी के एक सुंदर, सुशील व स्वस्थ पुत्र पैदा हुआ I पुत्र का नामकरण गोपाल के रूप में हुआ I

बड़ा होने पर पुत्र गोपाल ने भी मां से एक दिन प्रश्न किया कि मैंने तुम्हारे ही घर में जन्म लिया इसका क्या कारण है I माता गुंजन ने पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की जानकारी दी I व्रत का महत्व जानकर गोपाल ने भी व्रत करने का संकल्प किया I गोपाल जब सोलह वर्ष का हुआ तो उसने राज्य पाने की इच्छा से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया I व्रत समापन के बाद गोपाल घूमने के लिए समीप के नगर में गया I वहां के वृद्ध राजा ने गोपाल को पसंद किया और बहुत धूमधाम से आपनी पुत्री राजकुमारी मंगला का विवाह गोपाल के साथ कर दिया I सोलह सोमवार के व्रत करने से गोपाल महल में पहुँचकर आनंद से रहने लगा I

दो वर्ष बाद वृद्ध राजा का निधन हो गया, तो गोपाल को उस नगर का राजा बना दिया गया I इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से गोपाल की राज्य पाने की इच्छा पूर्ण हो गई I राजा बनने के बाद भी वह विधिवत सोलह सोमवार का व्रत करता रहा I व्रत के समापन पर सत्रहवें सोमवार को गोपाल ने अपनी पत्नी मंगला से कहा कि व्रत की सारी सामग्री लेकर वह समीप के शिव मंदिर में पहुंचे I

पति की आज्ञा का उलघंन करके, सेवकों द्वारा पूजा की सामग्री मंदिर में भेज दी I स्वयं मंदिर नहीं गई. जब राजा ने भगवान शिव की पूजा पूरी की तो आकाशवाणी हुई- ‘हे राजन्! तेरी रानी ने सोलह सोमवार व्रत का अनादर किया हैI सो रानी को महल से निकाल दे, नहीं तो तेरा सब वैभव नष्ट हो जाएगा I आकाशवाणी सुनकर उसने तुरंत महल में पहुंचकर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि रानी को दूर किसी नगर में छोड़ आओ I´ सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए उसे तत्काल उसे घर से निकाल दिया I रानी भूखी-प्यासी उस नगर में भटकने लगी I रानी को उस नगर में एक बुढ़िया मिली I वह बुढ़िया सूत कातकर बाजार में बेचने जा रही थी, लेकिन उस बुढ़िया से सूत उठ नहीं रहा था I बुढ़िया ने रानी से कहा- ‘बेटी! यदि तुम मेरा सूत उठाकर बाजार तक पहुंचा दो और सूत बेचने में मेरी मदद करो तो मैं तुम्हें धन दूंगी I’

रानी ने बुढ़िया की बात मान ली I लेकिन जैसे ही रानी ने सूत की गठरी को हाथ लगाया, तभी जोर की आंधी चली और गठरी खुल जाने से सारा सूत आंधी में उड़ गया I बुढ़िया ने उसे फटकारकर भागा दिया I रानी चलते-चलते नगर में एक तेली के घर पहुंची I उस तेली ने तरस खाकर रानी को घर में रहने के लिए कह दिया लेकिन तभी भगवान शिव के प्रकोप से तेली के तेल से भरे मटके एक-एक करके फूटने लगे, तेली ने भी भागा दिया I

भूखी-प्यास से व्याकुल रानी वहां से आगे की ओर चल पड़ी. रानी ने एक नदी पर जल पीकर अपनी प्यास शांत करनी चाही तो नदी का जल उसके स्पर्श से सूख गया I अपने भाग्य को कोसती हुई रानी आगे चल दी.चलते-चलते रानी एक जंगल में पहुंची I उस जंगल में एक तालाब था I उसमें निर्मल जल भरा हुआ था I निर्मल जल देखकर रानी की प्यास तेज हो गई Iजल पीने के लगी रानी ने तालाब की सीढ़ियां उतरकर जैसे ही जल को स्पर्श किया, तभी उस जल में असंख्य कीड़े उत्पन्न हो गए I रानी ने दु:खी होकर उस गंदे जल को पीकर अपनी प्यास शांत की I

रानी ने एक पेड़ की छाया में बैठकर कुछ देर आराम करना चाहा तो उस पेड़ के पत्ते पलभर में सूखकर बिखर गए I रानी दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठी जिस पेड़ के नीचे बैठती वही सुख जाता I

वन और सरोवर की यह दशा देखकर वहां के ग्वाले बहुत हैरान हुए I ग्वाले रानी को समीप के मंदिर में पुजारी जी के पास ले गए I रानी के चेहरे को देखकर ही पुजारी जान गए कि रानी अवश्य किसी बड़े घर की है I भाग्य के कारण दर-दर भटक रही है I

पुजारी ने रानी से कहा- ‘पुत्री! तुम कोई चिंता नहीं करो I मेरे साथ इस मंदिर में रहो. कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा I’ पुजारी की बातों से रानी को बहुत सांत्वना मिली I रानी उस मंदिर में रहने लगी, रानी भोजन बनाती तो सब्जी जल जाती, आटे में कीड़े पड़ जाते. जल से बदबू आने लगती I पुजारी भी रानी के दुर्भाग्य से बहुत चिंतित होते हुए बोले- ‘हे पुत्री! अवश्य ही तुझसे कोई अनुचित काम हुआ है जिसके कारण देवता तुझसे नाराज हैं और उनकी नाराजगी के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है Iपुजारी की बात सुनकर रानी ने अपने पति के आदेश पर मंदिर में न जाकर, शिव की पूजा नहीं करने की सारी कथा सुनाई I

पुजारी ने कहा- ‘अब तुम कोई चिंता नहीं करो I कल सोमवार है और कल से तुम सोलह सोमवार के व्रत करना शुरू कर दो I भगवान शिव अवश्य तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे I’ पुजारी की बात मानकर रानी ने सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ कर दिए I रानी सोमवार का व्रत करके शिव की विधिवत पूजा-अर्चना की तथा व्रतकथा सुनने लगी, जब रानी ने सत्रहवें सोमवार को विधिवत व्रत का समापन किया तो उधर उसके पति राजा के मन में रानी की याद आई, राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को रानी को ढूँढकर लाने के लिए भेजा I रानी को ढूँढते हुए सैनिक मंदिर में पहुँचे और रानी से लौटकर चलने के लिए कहा, पुजारी ने सैनिकों से मना कर दिया और सैनिक निराश होकर लौट गए, उन्होंने लौटकर राजा को सारी बात बताईं I

राजा स्वयं उस मंदिर में पुजारी के पास पहुँचे और रानी को महल से निकाल देने के कारण पुजारी जी से क्षमा माँगी I पुजारी ने राजा से कहा- ‘यह सब भगवान शिव के प्रकोप के कारण हुआ है. इतना कहकर रानी को विदा किया I

राजा के साथ रानी महल में पहुँची I महल में बहुत खुशियाँ मनाई गईं I पूरे नगर को सजाया गया I राजा ने ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और धन का दान दिया I नगर में निर्धनों को वस्त्र बाँटे गए I

रानी सोलह सोमवार का व्रत करते हुए महल में आनंदपूर्वक रहने लगी I भगवान शिव की अनुकम्पा से उसके जीवन में सुख ही सुख भर गए I

सोलह सोमवार के व्रत करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन में किसी तरह की कमी नहीं होती है I स्त्री-पुरुष आनंदपूर्वक जीवन-यापन करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं I

16 somvar vrat katha in hindi
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16 सोमवार व्रत कथा pdf yaha dekhe.

Once Lord Shiva, while traveling with Parvati, reached the city of Amaravati in the mortal world. The king of that city had built a huge temple of Lord Shiva. Shiva and Parvati started living in that temple. One day Parvati asked Lord Shiva to Said- ‘O Prannath! Today I feel like playing backgammon.’ Knowing Parvati’s wish, Shiva sat down to play backgammon with Parvati. As soon as the game started, the priest of that temple came there. Mother Parvati ji asked the priest – O priest! Tell me who will win in this bet?

The Brahmin said – That of Mahadev ji. But in Chausar, Shiv ji was defeated and Mother Parvati ji won. Then he cursed the Brahmin to become a leper for the crime of telling a lie. Shiva and Parvati returned from that temple to Mount Kailash. Parvati Due to the curse of Ji, the priest became a leper. The men and women of the city started staying away from even the shadow of that priest. Some people complained to the king that the priest had become a leper, so the king thought that the priest had become a leper due to some sin and got him thrown out of the temple. In his place, another Brahmin was made the priest. The leper priest sat outside the temple and begged.

After many days, some Apsaras from heaven came to that temple and after seeing him asked the reason. The priest without hesitation told them the whole story of Lord Shiva and Parvatiji playing backgammon and Parvatiji cursing. Then the Apsaras asked the priest sixteen Mondays. Asked to observe a formal fast.

When the priest asked about the method of worship, the Apsaras said – ‘On Monday, wake up before sunrise, take bath, wear clean clothes, take half a pound of wheat flour and make three parts of it. Then light a ghee lamp and take jaggery, naivedya, belpatra, Worship Lord Shiva during Pradosh period with sandalwood, Akshat, flowers and a pair of sacred thread. After the worship, offer one of the three organs to Lord Shiva and then take one. Consider the remaining two body parts as God’s Prasad and distribute them among the men, women and children present there. When sixteen Mondays pass by fasting in this way, then on the seventeenth Monday, make a loaf of flour, mix ghee and jaggery in it and make churma. Then Lord After offering food to Shiva, distribute the Prasad among the men, women and children present there. By observing fast on sixteen Mondays and listening to the story of the fast, Lord Shiva will destroy your leprosy and fulfill all your wishes. Saying this, the Apsaras went to heaven.

The priest observed a fast of sixteen Mondays as per the instructions of the Apsaras. As a result, due to the mercy of Lord Shiva, his leprosy was cured. The king again made him the priest of the temple. He started living a happy life worshiping Lord Shiva in the temple.

After a few days, while touring the earth again, Lord Shiva and Parvati reached that temple. Seeing the healthy priest, Parvati was surprised and asked the reason for his getting rid of the disease, then the priest told her the whole story of fasting on sixteen Mondays.

Parvati ji was also very happy to hear about the fast and after asking the priest about its method, she herself started the fast on sixteen Mondays. In those days, Parvati ji was very worried about her son Kartikeya getting angry and going away. She tried to bring Kartikeya back. She had taken many measures, but Kartikeya was not coming back to her. While fasting for sixteen Mondays, Parvati prayed to Lord Shiva for the return of Kartikeya. Kartikeya actually returned on the third day of the end of the fast.

Kartikeya asked Parvatiji regarding his change of heart – ‘O Mother! ‘What remedy did you take by which my anger was destroyed and I returned?’ Then Parvatiji told Kartikeya the story of the sixteen Monday fasts.

Kartikeya was very sad when one of his Brahmin friend Brahmadatt went abroad. To bring him back, Kartikeya observed a fast for sixteen Mondays and expressed his wish for Brahmadatt’s return. After a few days of the end of the fast, the friend returned. The Brahmin said to Kartikeya- ‘Dear friend! ‘What measure did you take that completely changed my thoughts while abroad and I returned remembering you?’ Kartikeya also narrated the story and method of fasting for sixteen Mondays to his friend. Hearing about the fast, the Brahmin friend Very happy, he also fasted.

After concluding the fast of sixteen Mondays, Brahmadutt set out on a foreign trip. There, the Swayamvara of Princess Gunjan, daughter of the king of the city, Raja Harshvardhan, was taking place. The king there had pledged that an elephant would put this garland around her neck, he would marry his daughter. Will marry him.

The Brahmin also went to the palace out of curiosity. Princes of many kingdoms were sitting there. Suddenly a decorated elephant came there carrying a garland in her trunk. The elephant put the garland around the neck of the Brahmin. As a result the princess got married to the Brahmin.

One day his wife asked- ‘O Prannath! What auspicious deed had you done that the elephant left the princes and put a garland around your neck? The Brahmin told the method of fasting on sixteen Mondays. After knowing the importance of sixteen Mondays from her husband, the princess kept the fast on sixteen Mondays with the wish of her son. At a certain time, by the grace of Lord Shiva, a beautiful, well-behaved and healthy son was born to the princess. The son was named as Gopal.

After growing up, son Gopal also asked his mother one day, what is the reason that I was born in your house. Mother Gunjan informed her son about fasting on sixteen Mondays. Knowing the importance of fasting, Gopal also resolved to observe the fast. When Gopal turned sixteen, he observed a fast for sixteen Mondays with the desire to attain the kingdom. After completing the fast, Gopal went to a nearby town for a walk. The old king there liked Gopal and with great pomp he married his daughter Princess Mangala to Gopal. After fasting for sixteen Mondays, Gopal reached the palace and started living happily.

Two years later, when the old king passed away, Gopal was made the king of that city. In this way, by fasting for sixteen Mondays, Gopal’s wish of getting the kingdom was fulfilled. Even after becoming the king, he continued to fast for sixteen Mondays. At the end of the fast, on the seventeenth Monday, Gopal asked his wife Mangala to reach the nearby Shiva temple with all the material for the fast.

Disobeying her husband’s orders, she sent the puja materials to the temple through the servants and did not go to the temple herself. When the king completed the worship of Lord Shiva, a voice from the sky said – ‘O King! Your queen has disrespected the fast of sixteen Mondays. So expel the queen from the palace, otherwise all your glory will be destroyed. Hearing the Akashvani, he immediately reached the palace and ordered his soldiers to leave the queen in some distant city. The soldiers obeyed the king’s orders and immediately threw her out of the house. The queen started wandering in that city hungry and thirsty. The queen found an old woman in that city. That old woman was going to spin yarn and sell it in the market, but that old woman The thread was not coming up. The old woman said to the queen – ‘Daughter! If you pick up my yarn and take it to the market and help me in selling the yarn, I will give you money.

The queen agreed to the old lady’s advice. But as soon as the queen touched the bundle of yarn, a strong storm blew and when the bundle was opened, all the yarn was blown away in the storm. The old lady rebuked her and sent her away. The queen walked into the city. Reached the house of an oilman. Out of pity, the oilman asked the queen to stay in the house, but due to the anger of Lord Shiva, the pots filled with oil started bursting one by one, the oilman also ran away.

Distraught with hunger and thirst, the queen moved ahead from there. When the queen tried to quench her thirst by drinking water from a river, the water of the river dried up at her touch. Cursing her fate, the queen moved ahead. While walking, the queen reached a forest. There was a pond in that forest. There was a pond in it. It was full of water. Seeing the clean water, the queen’s thirst increased. She started drinking the water. As soon as she descended the stairs of the pond and touched the water, innumerable insects appeared in that water. The queen felt sad and drank the dirty water. Satisfied my thirst by drinking.

When the queen wanted to rest for some time by sitting in the shade of a tree, the leaves of that tree dried up and scattered in a moment. The queen went and sat under another tree, the same tree under which she sat dried up.

Seeing this condition of the forest and the lake, the cowherds there were very surprised. The cowherds took the queen to the priest in the nearby temple. Just by looking at the queen’s face, the priest knew that the queen definitely belonged to a big family. Due to luck, -The rate is wandering.

The priest said to the queen- ‘Daughter! Don’t worry, stay with me in this temple. Everything will be fine in a few days. The queen got a lot of solace from the priest’s words. The queen started living in that temple. Whenever she cooked food, the vegetables would get burnt and insects would get into the flour. The water starts to smell. The priest also became very worried about the queen’s misfortune and said – ‘O daughter! Surely you have done some wrong thing due to which the Gods are angry with you and because of their displeasure you have got into this condition. After listening to the priest, the queen told the whole story of not going to the temple and not worshiping Shiva on the orders of her husband.

The priest said – ‘Now you don’t worry. Tomorrow is Monday and from tomorrow you start fasting for sixteen Mondays. Lord Shiva will definitely forgive your sins.’ After listening to the priest, the queen started fasting for sixteen Mondays. The queen observed a fast on Monday and worshiped Lord Shiva as per the rituals and started listening to the story of the fast. When the queen concluded the fast on the seventeenth Monday, her husband the king remembered her. The king immediately sent his soldiers to Sent to find and bring back the queen.

While searching for the queen, the soldiers reached the temple and asked the queen to come back, the priest refused the soldiers and the soldiers returned disappointed, they returned and told the whole story to the king.

The king himself reached the priest in that temple and apologized to the priest for throwing the queen out of the palace. The priest told the king – ‘All this has happened due to the wrath of Lord Shiva. Saying this he bid farewell to the queen.

The queen reached the palace with the king. There were many celebrations in the palace. The entire city was decorated. The king donated food, clothes and money to the Brahmins. Clothes were distributed to the poor in the city.

The queen started living happily in the palace, fasting for sixteen Mondays. Due to the grace of Lord Shiva, her life was filled with happiness.

By fasting for sixteen Mondays and listening to stories, all the wishes of a person are fulfilled and there is no shortage of anything in life. Men and women live happily and attain salvation.

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आटपाट नगर होतं. त्या नगरांत एक महादेवाचं देऊळ होतं. एके दिवशीं काय झालं? शिवपार्वती फिरतां फिरतां त्या देवळांत आलीं. सारीपाट खेळूं लागलीं. “डाव कोणी जिंकला?” म्हणून पार्वतीनं गुरवाला विचारलं. त्यानं शंकराचं नांव सांगितलं. पार्वतीला राग आला. गुरवाला “तूं कोडी होशील” म्हणून शाप दिला. तशा त्याला असह्य वेदना होऊं लागल्या.

पुढें एके दिवशी काय झालं? देवळीं स्वर्गीच्या अप्सरा आल्या. त्यांनी गुरव कोडी पाहिला. त्याला कारण पुशिलं गुरवानं गिरिजेचा शाप सांगितला. त्या म्हणाल्या, “भिऊं नको. घाबरूं नको. तूं सोळा सोमवारांचं व्रत कर, म्हणजे तुझं कोड जाईल.”

गुरव म्हणाला “ तें व्रत कसं करावं?” अप्सरांनीं सांगितलं, “सारा दिवस उपास करावा. संध्याकाळीं आंघोळ करावी. शंकराची पूजा करावी. नंतर अर्धा शेर कणीक घेऊन त्यांत तूप गूळ घालावा व तें खावं. मीठ त्या दिवशीं खाऊं नये. त्याप्रमाणं सोळा सोमवार करावे. सतरावे सोमवारीं पांच शेर कणीक घ्यावी, त्यांत तूप गूळ घालून चूर्मा करावा, तो देवळीं न्यावा. भक्तीनं शंकराची षोडशोपचारे पूजा करावी. नंतर चुर्म्याचा नैवद्य दाखवावा. पुढं त्याचे तीन भाग करावे. एक भाग देवाला द्यावा. दुसरा भाग देवळीं ब्राह्मणांना वांटाचा किंवा गाईला चारावा, तिसरा भाग आपण घरीं घेऊन जाऊन सहकुटुंबी भोजन करावं.” असं सांगून त्या नाहीशा झाल्या.

पुढं गुरवानं तें व्रत केलं, गुरव चांगला झाला. पुढं कांहीं दिवशंनीं शंकरपार्वती पुन्हां त्या देउळीं आलीं. पार्वतीनं गुरवाला कुष्ठरहित पाहिलं. तिनं गुरवाला विचारलं, “तुझं कोड कशानं गेलं?” गुरवानं सांगितलं, “मीं सोळा सोमवारांचं व्रत केलं, त्यानं माझं कोड गेलं” पारवतीला आश्चर्य वाटलं. तिनं आपला रागावून गेलेला मुलगा कार्तिकस्वामी परत यावा म्हणून हें व्रत केलं. समाप्तीनंतर कार्तिकस्वामी लागलीच येऊन भेटला. दोघांना आनंद झाला.

त्यानं आईला विचारलं “आई, आई, मी तर तुझ्यावर रागावून गेलों होतों आणि मला पुन्हां तुझ्या भेटीची इच्छा झाली, याचं कारण काय?” पार्वतीनं त्याला सोळा सोमवारच्या व्रताचा महिमा सांगितला. पुढें कार्तिकस्वामीनं तें व्रत केलं. त्याचा एक ब्राह्मण मित्र फार दिवस देशांतराला गेला होता त्याची व ह्याची सहज रस्त्यांत भेट झाली.पुढें कार्तिकस्वामींनं हे व्रत त्या ब्राह्मणाला सांगितलं. त्यानं लग्नाचा हेतु मनांत धरला. मनोभावें सोळा सोमवाराचं व्रत केलं. समाप्तीनंतर तो प्रवासाला निघाला. फिरतां फिरतां एका नगरांत आला.

तिथं काय चमत्कार झाला? तिथल्या राजाच्या मुलीचं लग्न होतं. लग्नाला अनेक देशांचे राजपुत्र आले होते. मंडप चांगले सुशोभित केले आहेत. लग्नाची वेळ झाली आहे. पुढं राजानं हत्तिणीच्या सोंडेंत माळ दिली. माळ ज्याच्या गळ्यांत हत्तीण घालील, त्याला आपली मुलगी द्यायची असा राजाचा पन होता. तिथं आपला हा ब्राह्मण ती मौज पहायला गेला होता. पुढं कर्मधर्मसंयोगानं ती माळ हत्तिणीनं ह्याच ब्राह्मणाच्या गळ्यांत घातली, तशी राजानं आपली मुलगी त्याला दिली. दोघांचं लग्न लावलं व नवरानवरींची बोळावण केली.

पुढं काय झालं? राजाची मुलगी मोठी झाली. तशीं दोघं नवराबायको एका दिवशीं खोलींत बसलीं आहेत; तसं बायकोनं नवर्‍याला विचारलं, “कोणत्या पुण्यानं मी आपणांस प्राप्त झालें?” त्यानं तिला सोळा सोमवारांच्या व्रताचा महिमा सांगितला. त्या व्रताची प्रचीती पाहण्याकरितां पुत्रप्राप्तीचा हेतु मनांत धरला व तें व्रत ती करूं लागली. तसा तिला सुंदर मुलगा झाला. तो मोठा झाल्यावर त्यानं आईला विचारलं कीं,“मी कोणत्या पुण्यानं तुला प्राप्त झालीं?” तिनं त्याला व्रताचा महिमा सांगितला. त्यानं राज्यप्राप्तीची इच्छा मनांत धरली. तो व्रत करूं लागला व देशपर्यटनाला निघाला.

इकडे काय चमत्कार झाला? फिरंता फिरंता तो एका नगरांत गेला. त्या राजाला मुलगा नव्हता, एक मुलगी मात्र होती. तेव्हां कोणीतरी एकादा सुंदर व गुणावान असा नवरामुलगा पाहून त्याला आपली मुलगी द्यावी, व राज्यही त्यालाच द्यावं, असा त्यानं विचार केला. अनायासं त्या पुत्राची गांठ पडली. राजानं त्याला पाहिलं. तों राजचिन्हं त्याच्या दृष्टीस पडली. राजानं त्याला आपल्या घरी आणलं. कन्यादान केलं व त्याला आपल्या राज्यावर बसवलं.

इतकं होत आहे तों ब्राह्मणाचा सतरावा सोमवार आला. ब्राह्मणपुत्र देऊळीं गेला. घरीं बायकोला निरोप पाठविला की, पांच शेर कणकीचा चुर्मा पाठवून दे. राणीनं आपला थोरपणा मनांत आणला. चुर्म्याला लोक हंसतील, म्हणून एका तबकांत पांचशें रुपये भरून ते पाठवून दिले. चुर्मा वेळेवर आला नाहीं, व्रतभंग झाला म्हणून देवाला राग आला. त्यानं राजाला दृष्टांत दिला. तो काय दिला?

राणीला घरांत ठेवशील तर राज्याला मुकशील. दरिद्रानं पिडशील. असा शाप दिला. पुढं दुसरे दिवशीं ही गोष्ट राजानं प्रधानाला सांगितली. तो म्हणाला. “महाराज, राज्य हें तिच्या बापाचं. आपण असं करू लागलों तर लोक दोष देतील, याकरितां असं करणं अयोग्य आहे.” राजा म्हणाला, ‘ईश्वराचा दृष्टान्त अमान्य करणं हेंहीं अयोग्य आहे.” मग उभयतांनीं विचार केला. तिला नगरांतून हांकून लावलं. पुढं ती दीन झाली. रस्त्यानं जाऊं लागली. जातां जातां एका नगरांत गेली. तिथं एका म्हातारीच्या घरीं उतरली. तिनं तिला ठेवून घेतलं, खाऊंपिऊं घातलं.

पुढं काय झालं? एके दिवशीं म्हातारींनं तिला चिवटं विकायला पाठवलं. दैवाची गति विचित्र आहे! बाजारांत ती चालली. मोठा वारा आला, सर्व चिवटं उडून गेलीं. तिनं घरीं येऊन म्हातारीला सांगितलं. तिनं तिला घरांतून हांकलून लावलं. तिथून निघाली तों एका तेल्याच्या घरीं गेली, तिथे तेलाच्या घागरी भरल्या होत्या, त्यांजवर तिची नजर गेली. तसं त्यातलं सगळं तेल नाहीसं झालं. म्हणून तेल्यानं तिला घालवून दिलं. पुढं तिथून निघाली. वाटेनं जाऊं लागली.

जातां जातां एक नदी लागली. त्या दिवशी नदीला पाणी पुष्कळ होतं. पण तिची दृष्टी त्याजवर गेल्याबरोबर सर्व पाणी आटून गेलं. पुढं जातां जातां एक सुंदर तळं लागलं. त्याजवर तिची दृष्टी गेली, तसे पाण्यांत किडे पडले. पाणी नासून गेलं. रोजच्यासारखे तळ्यावर गुराखी आले. नासकं पाणी पाहून मागं परतले. गुरंढोरं तान्हेलीं राहिली.

पुढं काय झालं? तिथं एक गोसावी आला. त्यानं तिला पाहिलं. कोण कुठची म्हणून सगळी हकीकत विचारली. तिनं सगळी हकीकत सांगितली. गोसाव्यानं तिला धर्मकन्या मानलं व आपले घरीं घेऊन आला. तिथं राहून ती कामधंदा करूं लागली. तशी जिकडे तिकडे तिची दृष्टी जाऊं लागली. ज्यांत तिची दृष्टी जाई त्यांत किडे पडावे, कांहीं जिनसा आपोआप नाहींशा व्हाव्या, असा चमत्कार होऊं लागला.

मग गोसाव्यानं विचार केला. अंतर्द्दष्टि लावली. तिच्या पदरीं व्रत मोडल्याचं पाप आहे असं त्यानं जाणलं. तें नाहीसं केल्याशिवाय तिची दृष्टी चांगलीं होणार नाहीं असं ठरवलं. मग त्यानं शंकराची प्रार्थना केली. देव प्रसन्न झाले. गोसाव्यानं राणीबद्दल प्रार्थना केली. शंकरानं तिला सोळा सोमवाराचं व्रत करायला सांगितलं व आपण अंतर्धान पावले. पुढं गोसाव्यानं तिच्याकडून सोळा सोमवाराचं व्रत करविलं, तसा परमेश्वराचा कोप नाहींसा झाला.

तिच्या नवर्‍याला तिच्या भेटीची इच्छा उद्भवली, दूत चोहीकडे शोधाला पाठवले. शोधतां शोधतां तिथं आले. गोसाव्याच्या मठींत राणीला पाहिलं. तसंच जाऊन त्यांनी सांगितलं. त्याला मोठा आनंद झाला. राजा प्रधानासुद्धा गोसाव्याकडे आला. गोसाव्याला साष्टांग नमस्कार केला. वस्त्रप्रावर्णं देऊन संतोषित केलं. गोसावी म्हणाला, “राजा राजा, ही माझी धर्मकन्या. मी इतके दिवस तिला माहेरी ठेवूनीं घेतलं होतं, ती तुझी स्त्री आपले घरीं घेऊन जा व चांगल्या रीतीनं पाणिग्रहण करून सुखानं नांद.”राजानं होय म्हटलं. गोसाव्याला जोड्यानं नमस्कार केला व राणीला घेवून आपल्या नगरीं आला. पुढं मोठा उत्सव केला. दानदक्षिणा देऊन ब्राह्मण संतुष्ट केले. राजाराणींची भेट झाली. आनंदानं रामराज्य करूं लागली.

तसे तुम्ही शंकराला प्रसन्न करून रामराज्य करा. ही साठां उत्तरांची कहाणी पांचा उत्तरीं, देवाब्राह्मणांचे द्वारीं, गाईचे गोठींत, पिंपळाचे पारीं सुफळ संपूर्ण.

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ઈશ્વર-પારવતી ઘર-પારવતી બેઠાં હતાં. સોગઠાં-બાજીની રમત માંડી.

કોઈ હારે નહિ, કોઈ જીતે નહિ. હાર્યું-જીત્યું કોણ કહે ? એટલામાં એક તપોધન આવ્યો.

મહાદેવજી કહે : ‘ઊભો રહે ! હાર્યાં ને હાર્યું કહેજે ને જીત્યાને જીત્યું કહેજે.’

પહેલા પસ્તે પાસા નાખ્યા. ‘કોણ હાર્યું ને કોણ જીત્યું ?’

તપોધન કહે : ‘ભગવાન જીત્યા ને માતાજી હાર્યાં.’

બીજે પર્સ્ટ પાસા નાખ્યા. ‘કોણ હાર્યું ને કોણ જીત્યું ?’

તપોધન કહે : ‘ભગવાન જીત્યા ને માતાજી હાર્યાં.’

ત્રીજા પસ્ટે પાસા નાખ્યા. ‘કોણ હાર્યું ને કોણ જીત્યું ?’

તપોધન કહે : ‘ભગવાન જીત્યા ને માતાજી હાર્યા.’

ત્રણ વાર તપોધન જૂઠું બોલ્યો. મહાદેવજીની બીકે પાર્વતીને હાર્યો કહ્યા.

પાર્વતીને ક્રોધ ચઢ્યો અને તપોધનને શાપ આપ્યો કે, જા ! તને રક્તપિત્ત કોઢ થજો ! તપોધનને તો કોઢ નીકળ્યા ! તે બેબાકળો બની રડતો રડતો કૈલાસ પરથી ચાલતો થયો.

ચાલતાં ચાલતાં માર્ગમાં એક ગાય મળી. ગાય કહે : ‘ભાઈ, તું ક્યાં જાય છે ?’ કોઢિયો કહે : ‘મને માતા પારવતીએ શાપ આપ્યો છે. શાપનું નિવારણ કરવા જાઉં છું.’

ગાય બોલી : ‘ભાઈ ! મારું દુઃખ સાંભળતો જા. મારા ભર્યા આંચળ ફાટે છે. મારું દૂધ કોઈ પીતું નથી, વાછરડાં ધાવતાં નથી !એવાં મેં શા પાપ કર્યાં હશે ? મારા પાપનું નિવારણ પૂછતો આવજે.’

આગળ જતાં એક ઘોડો મળ્યો. કોઢિયાની વાત સાંભળી ઘોડો બોલ્યો : ‘મારા ઉપર મોતીજડ્યાં પલાણ છે, પણ કોઈ સવારી કરતું નથી. એવાં મેં શા પાપ કર્યાં હશે ? મારા પાપનું નિવારણ પૂછતો આવજે.’

આગળ જતાં એક આંબો આવ્યો. કોઢિયો વિસામો ખાવા બેઠો. ત્યાં આંબાને વાચા થઈ: ‘ભાઈ, તારું દુઃખ હું જાણું છું, પણ મારું દુઃખ સાંભળતો જા ! મારું સવાશેરનું ફળ ઉતરે છે, પણ જે ખાય તે મરી જાય છે. એવાં મેં શાં પાપ કર્યાં હશે ? મારા દુઃખનું નિવારણ પૂછતો આવજે.’

આગળ જતાં એક તળાવ આવ્યું, કોઢિયો પાણી પીવા ગયો. પાણીમાંથી એક મગર આવ્યો અને બોલ્યો : ‘ભાઈ ! હું દુઃખિયારો જીવ છું, મારા શરીરમાં આગ જેવી બળતરા બળ્યા કરે છે. પાણીમાં રહું કે બહાર રહું, ક્યાંય ટાઢક વળતી નથી. એવાં મેં શાં પાપ કર્યાં હશે ? મારા દુઃખનું નિવારણ પૂછતો આવજે.’

કોઢિયો ઘોર વનમાં ગયો. ત્યાં એક મહાદેવજીનું દહેરું દીઠું. દહેરામાં પેસી, મહાદેવજીની પ્રદક્ષિણા કરીને તે એક પગે ઊભો રહ્યો. આમ કેટલાય દહાડા વીતી ગયા.

કોઢિયાનું કઠણ તપ જોઈ મહાદેવજી પ્રસન્ન થયા અને બોલ્યા : ‘માગ માગ ! માગે તે આપું.’ કોઢિયો બોલ્યો : ‘માતાજીનો શાપ છે, શાપનું નિવારણ કરવા આવ્યો છું. આખા શરીરે રક્તપિત્ત કોઢ નીકળ્યા છે. દુઃખ સહન થતું નથી. ભગવાન ! મારું દુઃખ મટાડી દો !’

મહાદેવજી બોલ્યા : ‘જા ! એક મનથી અને એક ચિત્તથી સોમવારનું વ્રત કરજે. તારું દુઃખ મટી જશે.’

‘સોમવારનું વ્રત શી રીતે થાય ?’ કોઢિયે પૂછ્યું.

મહાદેવજી બોલ્યા : શ્રાવણ માસ આવે, દિવાસાનો દિવસ આવે, દોરાની સેરે ચાર ગાંઠો વાળી, પીળા પસ્ટે દોરો બાંધવો. મહાદેવજીનું દર્શન કરવું. સોમવારે એકટાણું જમવું. જ્યારે કારતક માસનું અજવાળિયું આવે, ત્યારે ઘઉંનો સવાશેર લોટ લેવો, સવાશેર ઘી લેવું, સવાશેર ગોળ લેવો. તેનો ચોળીમોળી લાડુ કરવો. લાડુના ચાર ભાગ કરવા. એક ભાગ મહાદેવના પૂજારીને, બીજો રમતા બાળકને, ત્રીજો ગાયોના ગોવાળને આપજે અને વધેલાનો ભૂકો કરી કીડિયારું પૂરજે. એમ કરતાં વધે તો ભોંયમાં ભંડારજે. રાત રહેવા દઈશ નહિં. એ રીતે વ્રતનું ઉજવણું કરજે. સોળ સોમવાર ખરા ભાવથી કરજે. તારું દુ:ખ મટી જશે. કંચન જેવી કાયા થશે.’

કોઢિયો બોલ્યો : ‘ભગવાન મને માર્ગમાં એક ગાય મળી, તે કહેવા લાગી : ‘મારા ભર્યાં આંચળ ફાટે છે, પણ દૂધ કોઈ પીતું નથી. વાછરડાં ધાવતાં નથી.’ એણે શાં પાપ કર્યો હશે ?’

મહાદેવજી બોલ્યા : પરભવમાં એ સ્ત્રી હતી, એણે ધાવતાં બાળક વછોડ્યાં હતા. એ પાપથી એનું દૂધ કોઈ પીતું નથી. તું એના દૂધથી મારી પૂજા કરજે, સૌ સારાંવાનાં થશે.’

કોઢિયે ઘોડાની વાત પૂછી. મહાદેવજીએ કહ્યું : ‘સાંભળ ! ગયે ભવ એ વાણિયો હતો. એણે જૂઠાં કાટલાથી, જૂઠાં બોલથી નિર્ધન લોકોને બહુ ઠગ્યા હતા. એ પાપે એની આવી દશા થઈ છે. તું એની સવારી કરજે. એનું દુઃખ મટી જશે.’ કોઢિયે આંબાની વાત પૂછી.

મહાદેવજીએ કહ્યું : ‘પરભવમાં એ ઘણો કંજૂસ હતો. ધન ભેગું કરવામાં સમજ્યો અને પૂણ્યને નામે એક પૈસો પણ ના વાપર્યો. એ પાપે એ આંબો થયો. એના નીચે ધનના ચાર ચરુ છે, એ ધનથી તું પરબો મંડાવજે અને ભૂખ્યાંને ભોજન આપજે, તેથી એનું દુઃખ દૂર થશે.’

કોઢિયે મગરની વાત પૂછી. મહાદેવજી કહે : ‘પરભવમાં એ બ્રાહ્મણ હતો. વેદ ભણ્યો, શાસ્ત્રો ભણ્યો, જ્ઞાનનો કંઈ પાર નહીં, પણ કોઈને વિદ્યાદાન દીધું નહિ. એ એવા વિચારમાં બળતો કે, જો હું કોઈને વિદ્યા શીખવીશ તો મારો કોઈ ભાવ નહિ પૂછે, મારી આવક જશે ! આવું સમજનારાઓની બીજી શી દશા થાય ? જા ! તું મારી પ્રસાદી બીલીપત્ર એની આંખે અડાડી નમન કરાવજે. એનું દુઃખ દૂર થશે.’

કોઢિયો તો મહાદેવજીને નમન કરીને ચાલતો થયો.

આગળ જતાં તળાવ આવ્યું, ત્યાં મગરને મહાદેવજીનું બીલીપત્ર અડાડી નમન કરાવ્યું. એની બળતરા મટી ગઈ એટલે તે પોતાનું જ્ઞાન કહેવા લાગ્યો. બીજાને જ્ઞાન આપવાથી તેની સદ્ગતિ થઈ.

આગળ જતાં આંબો આવ્યો. કોઢિયાએ મહાદેવજીએ કહેલી વાત કહી સંભળાવી. કોદાળી લઈ આવી ધનના ચરૂ ખોદી કાઢ્યા. ભૂખ્યાં-દુ:ખ્યાને ધન વહેંચી દીધું અને પરબો મંડાવી.

આંબાનાં ફળ અમૃત જેવા મીઠાં થઈ ગયાં ! આગળ જતાં ઘોડો મળ્યો તેને મહાદેવજીની વાત કહી સંભળાવી અને પોતે જ સવારી કરી એટલે ઘોડો પણ દુઃખમાંથી છૂટ્યો.

આગળ જતાં ગાય મળી. તેને પણ મહાદેવજીની વાત કહી સંભળાવી. તેનું દૂધ દોહી મહાદેવજી પર ભક્તિ ભાવથી ચડાવ્યું એટલે ગાય પણ દુઃખમાંથી છૂટી.

કોઢિયે વ્રત આદર્યું. દિવસે દિવસે તેના કોઢ મટવા લાગ્યા. કારતક મહિનો આવ્યો, મહાદેવજીના કહેવા પ્રમાણે એણે વ્રત પુરું કર્યું, મહાદેવજીની દયા થઈ. કંચનવરણી કાયા થઈ. રૂપરૂપનો અંબાર ને ગુણગુણનો ભંડાર ! ચાલતાં ચાલતાં તે પોતાના ગામના ગોંદરે આવ્યો. ગામના લોકો કહેવા લાગ્યા : ડોશી ડોશી ! તમારો દીકરો આવ્યો.’

ડોશી તો રાજી થઈ ગઈ, પણ ડોશી મોતીના દાણા ક્યાંથી લાવે ? ડોશીએ તો જારના દાણે છોકરાને વધાવી લીધો. આજે રાજાની કુંવરીનો સ્વયંવર હતો. છોકરાએ ડોશીને પૂછ્યું : ‘મા, હું સ્વયંવર જોવા જાઉં ?’ ડોશી કહે : ‘ના બેટા આપણે નિર્ધન લોક, સ્વયંવર જોઈને શું કામ છે ?’

છોકરો કહે : ‘ના, હું તો જઈશ.’ છોકરો તો રાજસભામાં જઈને એક કોરે ઊભો રહ્યો. શણગારેલી હાથણી ઝૂલતી ઝૂલતી આવી અને વરમાળા છોકરાના ગળામાં આરોપી ! રાજા બોલી ઊઠ્યા : ‘હાથણી ભૂલે છે, ચૂકે છે.’ હાથણી કહે : ‘ભૂલતી નથી, ચૂકતી નથી.’

આખી રાજસભા બોલી: ‘ભગવાને ધાર્યું હોય તે ખરું.’ રાજાએ પોતાની કુંવરીને છોકરા સાથે પરણાવી.

પહેરામણીમાં હાથી આપ્યા, ઘોડા આપ્યા, ગામ ને ગરાસ આપ્યાં, મનગમતી પહેરામણી આપી કુંવરીને વળાવી. રાજા બનેલો છોકરો રાણીને લઈને પોતાને ગામ ગયો. રાજકુંવરીને પરણીને આવ્યો, રંકમાંથી રાજા થયો.

ડોશી તો વળી પાછા જારના દાણા લઈને વધાવવા ગયાં, ત્યાં તો દાણા મોતીના થઈ ગયા ! ઘણા દિવસ વીતી ગયા ! શ્રાવણ માસ આવ્યો.

રાજા રાણીને કહેવા લાગ્યા : ‘મારે મહાદેવજીનું વ્રત છે, માટે સવાશેર ઘઉંનો લોટ, સવાશેર ઘી ને સવાશેર ગોળ લઈ લાડુ કરજે.

લાડુના ચાર ભાગ કરી એક ભાગ મહાદેવના પૂજારીને, એક ભાગ રમતા બાળકને, એક ભાગ ગાયના ગોવાળને આપજે અને એક ભાગ મારા માટે રાખજે.’ રાણીએ વિચાર કર્યો કે, આવા સૂકાભઠ્ઠ કોઠા જેવા લાડુ તે મારા સ્વામી ખાતા હશે ? એણે તો બત્રીસ શાક અને તેત્રીસ પકવાન કર્યા.

રાજા જમવા બેઠા. રસોઈ જોઈ રાણી ઉપર કોપ્યા. તેમણે મહાદેવજીની સ્તુતિ કરી વ્રત પૂરું કર્યું. અનાજના ચાર દાણા લઈ ચારે દિશામાં નાખ્યા અને ભૂખ્યા પેટે સૂઈ ગયા.

રાત્રે સ્વપ્નમાં મહાદેવજી આવ્યા અને રાજાને કહેવા લાગ્યા : ‘રાજા ! ઊંઘે છે, કે જાગે છે ?’ રાજા કહે : ‘જાગુ છું, ભગવાન !’ મહાદેવજી બોલ્યા : તારી રાણીને દેશવટો દે.’

રાજા કહે : ‘જેવી આજ્ઞા.’ સવાર થયું. રાજાએ પ્રધાનને કહ્યું : ‘રાણીને દેશવટો આપો.’ પ્રધાન રાણીને કાળાં લુગડાં પહેરાવી, કાળા ઘોડા ઉપર બેસાડીને ઘોર વનવગડામાં મૂકી આવ્યો.

રાણી તો રખડતાં રખડતાં એક ગામમાં આવી. તેણે ત્યાં એક ઘાંચણનું ઘર જોયું. રાણી ઘાંચણને કહેવા લાગી : ‘બહેન કોઈ પેટવરાણીએ માણસ રાખશો ?’

ઘાંચણને દયા આવી એટલે લાગી : ‘હા બહેન !આવી તો ભલે આવી. પેટવરાણીએ માણસ ક્યાંથી ?’ ઘાંચણના તો તેલના કુલ્લાં ઢળી ગયાં અને ઘાંચી માંદો પડ્યો.

ઘાંચણ રાણીને કહેવા લાગી : ‘બહેન ! તારા આવ્યાથી મારું ખોટું થયું, માટે તું અહીંથી જા.’ રાણી ત્યાંથી ચાલી નીકળી.

જતાં જતાં એક ડોશી દીઠી. રાણી ડોશીને કહેવા લાગી : મા, મા ! કોઈ પેટવરાણીએ માણસ રાખશો ?’

ડોશી કહે : ‘હા બહેન ! આવી તો ભલે આવી. પેટવરાણીએ માણસ ક્યાંથી ?’ ડોશીમાની તો પૂણીઓ ઊડી ગઈ અને ડોશી માંદી પડી. ડોશી કહેવા લાગી : ‘બહેન ! તારે આવે મારું ખોટું થયું. માટે તું અહીં થી જા.’

વરાણી ત્યાંથી ચાલવા લાગી.

જતાં જતાં એક માળણના ઘર પાસે આવી. રાણી માળણને કહેવા લાગી: ‘બહેન! કોઈ પેટવરાણીએ માણસ રાખશો ?’

તો માળણ કહે : ‘હા બહેન! આવી તો ભલે આવી. પેટવરાણીએ માણસ ક્યાંથી ?’ માળણને તો નિત્ય સવામણ ફૂલ ઉતરતાં હતાં, તેનાં પાશેર ફૂલ ઉતરવા લાગ્યાં ! માળણે કહ્યું: ‘બહેન ! તારે આવે મારું ખોટું થયું, માટે અહીંથી જા.’

રાણી ત્યાંથી પણ ચાલવા લાગી. જતાં જતાં તે એક સરોવરની પાળે ગઈ ને પાણીઆરીઓને કહેવા લાગીઃ ‘બહેનો! કોઈ પેટવરાણીએ માણસ રાખશો ?’

પાણીઆરીઓએ કહ્યું : ‘હા બહેન ! આવી તો ભલે આવી. પેટવરાણીએ માણસ ક્યાંથી ?’ ત્યાં તો સરોવર સૂકાઈ ગયું અને પાણીઆરીઓ માંદી પડી ! પાણીઆરીઓ કહે : બહેન ! તારે આવે અમારું ખોટું થયું, માટે તું અહીંથી જા.’

રાણી ત્યાંથી પણ ચાલી નીકળી. જતાં જતાં વાટમાં એક બાવાની મઢી આવી. રાણી તો મઢીમાં રહી ગઈ. બાવો બાર ઘર ફરતો ને બારશેર આટો લાવતો.

આજે તે બાર ગામ ફર્યો તો ય પાશેર આટો ના મળ્યો ! બાવો મઢીમાં આવ્યો.

મઢીનું બારણું બંધ જોઈ કહેવા લાગ્યો : ‘મારી મઢીમાં કોણ છે ? મોટી હોઈશ તો મા કહીશ, નાની હોઈશ તો બહેન કહીશ, એથી ય નાની હોઈશ તો દીકરી કહીશ. બારણું ઉઘાડ !’

રાણીએ ધ્રૂજતાં ધ્રૂજતાં મઢીનું બારણું ઉઘાડ્યું. બાવો કહે : ‘તું બીશ નહિ, આપણે બાપ દીકરી થઈને રહીશું.’ બીજો દિવસ થયો, બાપ-દીકરી સાથે જમવા બેઠાં.

દીકરીના ભાણામાં તો ભોજનના જીવડાં થઈ ગયાં ! બાવો કહે : દીકરી ! પુસ્તક લાવો, પોથી લાવો, ખડિયો લાવો, કલમ લાવો. તમારા ભાગ્યની રેખાઓ જોઉં.’

દીકરી લેવા ગઈ પણ પુસ્તક-પોથી જડતાં નથી, ખડિયો-કલમ જડતાં નથી, લેવા જાય છે તો કાનખજૂરા અને વીંછી કરડવા આવે છે ! ત્યારે બાવો જાતે પુસ્તક-પોથી અને ખડિયો કલમ લઈ આવ્યો.

પહેલું પુસ્તક બ્રહ્માનું જોયું. બીજું પુસ્તક મહાદેવજીનું જોયું. બાવો કહે : દીકરી, તમે મહાદેવજીનું વ્રત વખોડ્યું છે. માટે મહાદેવજીનું વ્રત કરો.’

દીકરી કહે : ‘બાપુ એ વ્રત શી રીતે થાય ?’ બાવો કહે : ‘સરોવરની પાળે જઈ છોકરીઓને પૂછો ! દીકરી સરોવરની પાળે ગઈ અને છોકરીઓને પૂછવા લાગી: ‘બહેન! તમે શાનાં વ્રત કરો છો ?’

છોકરીઓ કહે : ‘અમે મહાદેવજીના વ્રત કરીએ છીએ.’ રાણી કહે : ‘એ વ્રત મને આપોને !’

બહેન ! તારાથી થશે નહિ, કરાશે નહિ.’ ‘

કરાશે તો યે કરીશ, નહી કરાય તો યે કરીશ.’

છોકરીઓ કહે : ‘દિવાસાનો દિવસ આવે ત્યારે દોરાને છેડે ચાર ગાંઠો વાળી પીળા પસ્ટે દોરો બાંધવો. મહાદેવજીની વાત સાંભળવી. મહાદેવજીનો દીવો કરવો. મહાદેવજીનાં દર્શન કરવાં. વાત ના સાંભળી હોય તો ઉપવાસ કરવો. દીવો ન કર્યો હોય તો લૂખું ખાવું અને દર્શન ના કર્યાં હોય તો ભોંય પર સૂઈ રહેવું. કારતક માસ આવે, અજવાળિયું પખવાડિયું આવે ત્યારે સવાશેર ઘઉંનો લોટ, સવાશેર ઘી અને સવાશેર ગોળ લેજે, ચોળીમોળી લાડું કરજે, તેમાંથી એક ભાગ મહાદેવજીની મઢીમાં મોકલજે, બીજો હસતાં રમતાં બાળકોને આપજે. ત્રીજો ભાગ ગાયોના ગોવાળને આપજે. ચોથા ભાગનો ભૂકો કરી કીડિઆરું પૂરજે. એથી વધે તો ભોંયમાં ભંડારજે. રાત દેખાડીશ નહીં. એ પ્રમાણે વ્રત કરજે.’

રાણી વ્રત લઈને ચાલી. એક વરસ કર્યાં. બે વરસ કર્યાં. ત્યાં તો મહાદેવજી રાજાના સ્વપ્રમાં આવીને બોલ્યા : ‘રાજા ! જાગે છે કે ઊંઘે છે !’ રાજા કહે : ‘ના રે પ્રભુ જાગું છું.’ ‘રાણીને દેશવટો દીધો હતો, તેને પાછી લઈ આવ.’

રાજા કહે : ‘હવે ક્યાંથી લાવું ? કોયલ જેવું માણસ હતું. વાઘે માર્યું કે વરુએ માર્યું ! હવે ક્યાંથી હોય ?’

મહાદેવજી કહે : ‘વાઘે નથી માર્યું, વરુએ નથી માર્યું, જે વાટે ગઈ છે. તે વાટે જા.’ રાજા ત્યાંથી ચાલી નીકળ્યો.

વાટે જતાં ઘાંચણનું ઘર આવ્યું. રાજા કહે : ‘બહેન ! અહીંયાં કોઈ રાજાની રાણી આવી હતી ?’ ઘાંચણ કહે : ‘રાણી જેવા રૂપ હતાં પણ રાણી જેવાં લક્ષણ ન હતાં.’

રાજા ત્યાંથી ચાલ્યો જાય છે. ડોશીને ઘરે ગયો અને પૂછ્યું: માં અહીંયાં કોઈ રાજાની રાણી આવી હતી ?’ ડોશી કહે : ‘રાણી જેવા રૂપ હતાં પણ રાણી જેવાં લક્ષણ ન હતાં.

રાજા આગળ ચાલ્યો. માળણને ઘરે ગયો. બહેન ! અહીંયાં કોઈ રાજાની રાણી આવી હતી ?’ માળણ કહે : ‘રાણી જેવા રૂપ પણ રાણી જેવાં લક્ષણ ન હતાં.’ રાજા ત્યાંથી ચાલ્યો જાય છે.

સરોવરની પાળે ગયો. રાજાએ પૂછ્યું : ‘અહીં કોઈ રાણી આવી હતી ?’ પાણીઆરીઓ કહે : ‘રાણી જેવા રૂપ હતાં પણ રાણી જેવાં લક્ષણ ન હતાં.’

રાજા ફરતો ફરતો પેલી મઢી પાસે ગયો. રાજાને વિચાર થયો કે, કોઈ કકડો રોટલો આપે તો ખાઈપીને પાછો જાઉં. ત્યાં કોઈ છોકરીએ વ્રત ઉજવ્યું હતું. તેથી એક લાડવો મઢીમાં આપ્યો હતો.

આ લાડવો બાવાએ રાજાને ખાવા આપ્યો. લાડવો રાજાએ ખાધો, રંકે ખાધો, હાથીએ ખાધો, ઘોડાએ ખાધો, તો યે લાડવો એકનો એક ! પીવા માટે પાણીનો લોટો આપ્યો. રાજાએ પાણી પીધું તો યે લોટો ભર્યો ને ભર્યો ! રાજાને નવાઈ લાગી. તેને મનમાં થયું કે, આ મઢીમાં કોઈ સતી હશે, ચાલો ! દર્શન કરીને જઈએ.

એમ વિચારી રાજા મઢીમાં ગયા. રાજાએ રાણીને ઓળખ્યાં. રાણી બાવાને કહેવા લાગી : બાપુ સાસરીઆનાં તેડાં આવ્યા.’

બાવો કહે : ‘દીકરી ! દીકરી સાસરીએ શોભ ને હાથી રજવાડે શોભે ! રાણી કહે : ‘બાપુ ! તમને દુઃખ પડે તો હું શી રીતે જાણું ?’

બાવાએ ફૂલનો દડો આપ્યો, ઘીનો દીવો આપ્યો ને કહ્યું: ‘દીકરી જો દીવો ઠરી જાય, ફૂલનો દડો કરમાઈ જાય તો જાણજે કે તારા બાપુને દુઃખ પડ્યાં.’

રાજા અને રાણી અડધી વાટે ગયાં, ત્યાં તો ઘીનો દીવો ઠરી ગયો અને ફૂલનો દડો કરમાઈ ગયો ! રાણી કહે: ‘રાજા ! રે રાજા ! વેલ પાછી વાળો. મારા પિતાને દુઃખ આવ્યાં.’

રાજાએ વેલને પાછી વાળી, મઢીમાં જઈને જુએ છે, તો બાવો માથું બાંધીને સૂઈ રહ્યો હતો. રાણીએ કહ્યું : “બાપુ !તમને શું થયું ?’

‘બેટી ! મને કંઈ થયું નથી, હું તો તમારું પારખું જોતો હતો.’ બાવાએ બીજીવાર દીકરીને સવા લાખનો ગવારો અને એક અમીનો કૂંપો આપીને કહ્યું : ‘દીકરી ! જ્યાં બાળતા આવ્યાં, ત્યાં ઠારતાં જજો.’

ત્યાંથી રાણી ચાલ્યાં જાય છે. સરોવરની પાળે આવ્યાં. સરોવર સૂકાઈ ગયું હતું, તે લહેરો લેવા માંડ્યું. પાણીઆરીઓ રાજી થઈ ગઈ. પાણીઆરીઓ કહે : બહેન ! એક ઘડી બેસતી હોય તો બે ઘડી બેસ, તારે આવે અમારું સારું થયું.

એક રાંડ આવી હતી, તે બાળતી ગઈ, ઝાળતી ગઈ.’ રાંડ ન કહેશો, ભાંડ ના કહેશો. પહેલાં હું જ હતી. પહેલાં મહાદેવજી રુઠ્યા હતા અને હવે રીઝ્યા છે.’ ત્યાંથી ચાલ્યા જાય છે.

ઘાંચણને ઘેર આવ્યા. ઘાંચણના તેલનાં કુલ્લાં ભરાઈ ગયાં, ઘાંચી સાજો થયો. ત્યારે ઘાંચણ કહે : ‘બહેન ! એક ઘડી બેસતી હોય તો બે ઘડી બેસ. તારે આવે મારું સારું થયું.’

ત્યાંથી ચાલ્યાં જાય છે, ગામને ગોંદરે આવ્યાં, રાણીએ કહ્યું : ‘આખું ગામ જમાડો.’ રાજાએ આખું ગામ જમાડ્યું, પછી રાણીને એકાટ કરવા બોલાવ્યાં.

રાણી કહે : ‘મારે હજી મહાદેવજીની વાત કહેવાની છે.’ બધાં જમીને ઊઠ્યા. વાત કોને કહેવી ? વાત ભૂખ્યાં માણસને જ કહેવાય ! રાજા કહે : ‘આખું ગામ જમાડ્યું. હવે કોણ ભૂખ્યું હશે ?’ રાજાએ ગામમાં ઢંઢેરો પીટાવ્યો.

એક કુંભારના ઘરમાં સાસુવહુને લડાઈ થઈ હતી. ડોશી ભૂખી હતી. રાજાએ પ્રધાનને તેડવા મોકલ્યો. ડોશી કહે : ‘બાપ ! જમનાં તેડાં આવજો, રાજાનાં તેડાં ના આવજો.’

પ્રધાન કહે : ‘ડોશી ! તમને મારવાં નથી, ઝૂડવાં નથી, વાત સંભળાવવી છે.’ ડોશી કહે : ‘કાને બહેરી છું, આંખે આંધળી છું, પગે લૂલી છું, કેડે અપંગ છું, શી રીતે આવું?’ પ્રધાને આવીને રાજાને કહ્યું.

રાજાએ પ્રધાનને વેલ લઈને મોકલ્યો. પ્રધાન ડોશીને વેલમાં બેસાડીને લાવ્યા. ડોશી બેઠાં પાટલે, રાણી બેઠાં ખાટલે.

રાજા કહે : ‘ડોશીમા ! સાંભળો તો યે મહાદેવજી’ કહેજો, ના સાંભળો તો યે ‘મહાદેવજી’ કહેજો.

રાણીએ વાત કહેવા માંડી, પહેલા હુંકારે ડોશીને કાન આવ્યા, બીજા હુંકારે આંખો આવી, ત્રીજા હુંકારે પગ આવ્યા, ચોથા હુંકારે કમ્મર આવી અને પાંચમે હુંકારે ડોશી ટગુમગુ થઈ!

16 somvar vrat katha in gujrati
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ಒಂದಾನೊಂದು ಕಾಲದಲ್ಲಿ ಒಬ್ಬ ಶ್ರೀಮಂತ ಲೇವಾದೇವಿಗಾರನು ಒಂದು ಸ್ಥಳದಲ್ಲಿ ವಾಸಿಸುತ್ತಿದ್ದನು. ಅವರು ಸಂಪತ್ತು ಮತ್ತು ಭೌತಿಕ ಸೌಕರ್ಯಗಳನ್ನು ಹೊಂದಿದ್ದರು. ಆದರೆ ಮಕ್ಕಳಿಲ್ಲದೆ ಇದ್ದಾನೆ ಎಂಬ ಒಂದೇ ಒಂದು ನೋವು ಅವನ ಹೃದಯವನ್ನು ಕಲಕಿತು. ಅವರು ಮತ್ತು ಅವರ ಪತ್ನಿ ತಮ್ಮ ಸಂತತಿಯನ್ನು ಮುಂದುವರಿಸುವ ಯಾವುದೇ ಮಗುವನ್ನು ತೀವ್ರವಾಗಿ ಬಯಸಿದ್ದರು. ಆದರೆ ಅವನ ಅದೃಷ್ಟದಲ್ಲಿ ಯಾವುದೇ ಮಗು ಇರಲಿಲ್ಲ. ಅವರು ಶಿವನ ಮಹಾನ್ ಭಕ್ತರಾಗಿದ್ದರು ಮತ್ತು ವಾಡಿಕೆಯಂತೆ ಪ್ರತಿ ಸೋಮವಾರ ಶಿವ ದೇವಾಲಯಕ್ಕೆ ಭೇಟಿ ನೀಡುತ್ತಿದ್ದರು. ಒಂದು ದಿನ ಪಾರ್ವತಿ ದೇವಿಯು (ಶಿವನ ಪತ್ನಿ) ಆ ಭಕ್ತನ ಪ್ರಾರ್ಥನೆಯನ್ನು ಕೇಳುವಂತೆ ಶಿವನನ್ನು ಕೋರಿದಳು. ಆ ಭಕ್ತನ ಆಳವಾದ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ಗಮನಿಸಿದ ಮಹಾದೇವನು ಆಶೀರ್ವದಿಸಿ ಅವನಿಗೆ ಗಂಡು ಮಗುವನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಿದನು. ಆದರೆ ಮಗು 12 ವರ್ಷಗಳವರೆಗೆ ಮಾತ್ರ ಬದುಕುತ್ತದೆ ಎಂಬ ಒಂದು ಷರತ್ತಿನೊಂದಿಗೆ ಆ ಕೊಡುಗೆಯನ್ನು ನೀಡಲಾಯಿತು. ಆ ಮಗುವಿನ ಜನನದ ನಂತರ, ಆ ಲೇವಾದೇವಿಗಾರನನ್ನು ಹೊರತುಪಡಿಸಿ ಎಲ್ಲರೂ ನಿಜವಾಗಿಯೂ ಸಂತೋಷಪಟ್ಟರು ಏಕೆಂದರೆ ಅವರ ಹುಡುಗನಿಗೆ ಕೇವಲ 12 ವರ್ಷಗಳು ಮಾತ್ರ ಎಂದು ತಿಳಿದಿತ್ತು. 11 ವರ್ಷಗಳ ನಂತರ, ಲೇವಾದೇವಿಗಾರನು ತನ್ನ ಮಗುವನ್ನು ಶಿಕ್ಷಣವನ್ನು ಪೂರ್ಣಗೊಳಿಸಲು ಕಾಶಿಯಲ್ಲಿರುವ ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪನ ಮನೆಗೆ ಕಳುಹಿಸಲು ಯೋಚಿಸಿದನು. ಮನೀಲೆಂಡರ್ ತನ್ನ ಮಗುವಿನ ಸಾವಿನ ಬಗ್ಗೆ ತಿಳಿದಿತ್ತು. ಆದರೆ ಅವರು ಶಿವನ ಮೇಲಿನ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ಎಂದಿಗೂ ಮುರಿಯಲಿಲ್ಲ. ಅವರು, ವಾಸ್ತವವಾಗಿ, ತನ್ನ ಮಗು ಮತ್ತು ಮಗುವಿನ ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪನಿಗೆ ಯಂಗ್ಯಾ, ಪೂಜೆಯನ್ನು ಶಿವನಿಗೆ ಅರ್ಪಿಸಲು ಸಲಹೆ ನೀಡಿದರು. ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಮತ್ತು ಆ ಹುಡುಗ ಮನೆಯ ಕಡೆಗೆ ತಮ್ಮ ಪ್ರಯಾಣವನ್ನು ಪ್ರಾರಂಭಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ಸಾಧ್ಯವಿರುವ ಎಲ್ಲಾ ದೇಗುಲಗಳಲ್ಲಿ ಮತ್ತು ಬ್ರಾಹ್ಮಣರಿಗೆ ಯಾಗ, ಪೂಜೆ ಮತ್ತು ದಾನವನ್ನು ನೀಡಿದರು. ಅವರ ಪ್ರಯಾಣದಲ್ಲಿ ಅವರು ಮದುವೆ ಸಮಾರಂಭವನ್ನು ನೋಡಿದರು. ಮತ್ತು ಸಮಾರಂಭದಲ್ಲಿ ವರನ ಒಂದು ಕಣ್ಣಿನ ದೋಷದಿಂದಾಗಿ, ಅದೃಷ್ಟವಶಾತ್ ಈ ಹುಡುಗ ವರನಾದನು ಮತ್ತು ಶ್ರೀಮಂತ ಉದ್ಯಮಿಯ ಹುಡುಗಿಯನ್ನು ಮದುವೆಯಾದನು. ಆದರೆ ಆ ಹುಡುಗನು ವಿದ್ಯಾಭ್ಯಾಸವನ್ನು ಪೂರ್ಣಗೊಳಿಸಲು ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪನೊಂದಿಗೆ ಹೋಗಬೇಕಾಗಿದ್ದರಿಂದ ಅವನು ಕಾಶಿಗೆ ಹೋದನು. ಒಂದು ದಿನ ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಯಾಗ, ಪೂಜೆ ಮತ್ತು ಬ್ರಾಹ್ಮಣನಿಗೆ ದಾನ ನೀಡುವ ಪವಿತ್ರ ಸಮಾರಂಭವನ್ನು ಏರ್ಪಡಿಸುತ್ತಿದ್ದಾಗ, ಆ ಹುಡುಗನಿಗೆ ಅನಾರೋಗ್ಯ ಅನಿಸಿತು. ಮತ್ತು ಅವನ ಅನಾರೋಗ್ಯದ ಕಾರಣ, ಅವನ ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಅವನನ್ನು ವಿಶ್ರಾಂತಿ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳಲು ಮತ್ತು ಕೋಣೆಯಲ್ಲಿ ಸ್ಲಿಪ್ ಮಾಡಲು ಹೇಳಿದರು. ಆದರೆ ಹುಡುಗ ತನ್ನ 12 ವರ್ಷವನ್ನು ಪೂರ್ಣಗೊಳಿಸಿದ್ದರಿಂದ ಅವನು ತನ್ನ ಜೀವನವನ್ನು ತ್ಯಜಿಸಿದನು. ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಅವರು ಸತ್ತಿರುವುದನ್ನು ನೋಡಿದಾಗ ಅವರು ನೋವಿನಿಂದ ಬಳಲುತ್ತಿದ್ದರು ಆದರೆ ಮೊದಲು ಪವಿತ್ರ ಸಮಾರಂಭವನ್ನು ಪೂರ್ಣಗೊಳಿಸಲು ಯೋಚಿಸಿದರು. ಅದೃಷ್ಟವಶಾತ್, ಮಾತಾ ಪಾರ್ವತಿ ಮತ್ತು ಭಗವಾನ್ ಶಿವ ತಮ್ಮ ಮನೆಯ ಮೂಲಕ ಹಾದು ಹೋಗುತ್ತಿದ್ದರು ಮತ್ತು ಎಲ್ಲಾ ಸಂಬಂಧಿಕರು ಅಳುತ್ತಿರುವುದನ್ನು ನೋಡಿದರು. ಹುಡುಗ, ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಮತ್ತು ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಶಿವನ ಮೇಲೆ ಅಪಾರ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ತೋರಿಸಿದ್ದರಿಂದ ಮತ್ತು ಅಪಾರವಾದ ಪುಣ್ಯ ಕಾರ್ಯಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದ್ದರಿಂದ, ಶಿವ ಮತ್ತು ಪಾರ್ವತಿ ದೇವಿಯು ಆ ಹುಡುಗನಿಗೆ ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಜೀವವನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ಆ ಹುಡುಗನು ತನ್ನ ವಧುವಿನೊಡನೆ ಮನೆಗೆ ಹಿಂದಿರುಗಿದನು. ಅವನು ಜೀವಂತವಾಗಿರುವುದನ್ನು ಕಂಡು ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಸಂತೋಷಪಟ್ಟರು ಮತ್ತು ಮಹಾದೇವನಿಗೆ ಧನ್ಯವಾದ ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಅವನು ತನ್ನ ಜೀವನವನ್ನು ತ್ಯಜಿಸಿದನು. ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಅವರು ಸತ್ತಿರುವುದನ್ನು ನೋಡಿದಾಗ ಅವರು ನೋವಿನಿಂದ ಬಳಲುತ್ತಿದ್ದರು ಆದರೆ ಮೊದಲು ಪವಿತ್ರ ಸಮಾರಂಭವನ್ನು ಪೂರ್ಣಗೊಳಿಸಲು ಯೋಚಿಸಿದರು. ಅದೃಷ್ಟವಶಾತ್, ಮಾತಾ ಪಾರ್ವತಿ ಮತ್ತು ಭಗವಾನ್ ಶಿವ ತಮ್ಮ ಮನೆಯ ಮೂಲಕ ಹಾದು ಹೋಗುತ್ತಿದ್ದರು ಮತ್ತು ಎಲ್ಲಾ ಸಂಬಂಧಿಕರು ಅಳುತ್ತಿರುವುದನ್ನು ನೋಡಿದರು. ಹುಡುಗ, ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಮತ್ತು ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಶಿವನ ಮೇಲೆ ಅಪಾರ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ತೋರಿಸಿದ್ದರಿಂದ ಮತ್ತು ಅಪಾರವಾದ ಪುಣ್ಯ ಕಾರ್ಯಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದ್ದರಿಂದ, ಶಿವ ಮತ್ತು ಪಾರ್ವತಿ ದೇವಿಯು ಆ ಹುಡುಗನಿಗೆ ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಜೀವವನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ಆ ಹುಡುಗನು ತನ್ನ ವಧುವಿನೊಡನೆ ಮನೆಗೆ ಹಿಂದಿರುಗಿದನು. ಅವನು ಜೀವಂತವಾಗಿರುವುದನ್ನು ಕಂಡು ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಸಂತೋಷಪಟ್ಟರು ಮತ್ತು ಮಹಾದೇವನಿಗೆ ಧನ್ಯವಾದ ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಅವನು ತನ್ನ ಜೀವನವನ್ನು ತ್ಯಜಿಸಿದನು. ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಅವರು ಸತ್ತಿರುವುದನ್ನು ನೋಡಿದಾಗ ಅವರು ನೋವಿನಿಂದ ಬಳಲುತ್ತಿದ್ದರು ಆದರೆ ಮೊದಲು ಪವಿತ್ರ ಸಮಾರಂಭವನ್ನು ಪೂರ್ಣಗೊಳಿಸಲು ಯೋಚಿಸಿದರು. ಅದೃಷ್ಟವಶಾತ್, ಮಾತಾ ಪಾರ್ವತಿ ಮತ್ತು ಭಗವಾನ್ ಶಿವ ತಮ್ಮ ಮನೆಯ ಮೂಲಕ ಹಾದು ಹೋಗುತ್ತಿದ್ದರು ಮತ್ತು ಎಲ್ಲಾ ಸಂಬಂಧಿಕರು ಅಳುತ್ತಿರುವುದನ್ನು ನೋಡಿದರು. ಹುಡುಗ, ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಮತ್ತು ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಶಿವನ ಮೇಲೆ ಅಪಾರ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ತೋರಿಸಿದ್ದರಿಂದ ಮತ್ತು ಅಪಾರವಾದ ಪುಣ್ಯ ಕಾರ್ಯಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದ್ದರಿಂದ, ಶಿವ ಮತ್ತು ಪಾರ್ವತಿ ದೇವಿಯು ಆ ಹುಡುಗನಿಗೆ ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಜೀವವನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ಆ ಹುಡುಗನು ತನ್ನ ವಧುವಿನೊಡನೆ ಮನೆಗೆ ಹಿಂದಿರುಗಿದನು. ಅವನು ಜೀವಂತವಾಗಿರುವುದನ್ನು ಕಂಡು ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಸಂತೋಷಪಟ್ಟರು ಮತ್ತು ಮಹಾದೇವನಿಗೆ ಧನ್ಯವಾದ ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಭಗವಾನ್ ಶಿವನ ಬಗ್ಗೆ ಅಪಾರವಾದ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ತೋರಿಸಿದ್ದರು ಮತ್ತು ಅಗಾಧವಾದ ಧಾರ್ಮಿಕ ಕಾರ್ಯಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದರು, ಶಿವ ಮತ್ತು ಪಾರ್ವತಿ ದೇವಿಯು ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಆ ಹುಡುಗನಿಗೆ ಜೀವವನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ಆ ಹುಡುಗನು ತನ್ನ ವಧುವಿನೊಡನೆ ಮನೆಗೆ ಹಿಂದಿರುಗಿದನು. ಅವನು ಜೀವಂತವಾಗಿರುವುದನ್ನು ಕಂಡು ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಸಂತೋಷಪಟ್ಟರು ಮತ್ತು ಮಹಾದೇವನಿಗೆ ಧನ್ಯವಾದ ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ತಾಯಿಯ ಚಿಕ್ಕಪ್ಪ ಭಗವಾನ್ ಶಿವನ ಬಗ್ಗೆ ಅಪಾರವಾದ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ತೋರಿಸಿದ್ದರು ಮತ್ತು ಅಗಾಧವಾದ ಧಾರ್ಮಿಕ ಕೆಲಸವನ್ನು ಮಾಡಿದರು, ಶಿವ ಮತ್ತು ಪಾರ್ವತಿ ದೇವಿಯು ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಆ ಹುಡುಗನಿಗೆ ಜೀವವನ್ನು ಅರ್ಪಿಸಿದರು. ಮತ್ತು ಆ ಹುಡುಗನು ತನ್ನ ವಧುವಿನೊಡನೆ ಮನೆಗೆ ಹಿಂದಿರುಗಿದನು. ಅವನು ಜೀವಂತವಾಗಿರುವುದನ್ನು ಕಂಡು ಅವನ ಹೆತ್ತವರು ಸಂತೋಷಪಟ್ಟರು ಮತ್ತು ಮಹಾದೇವನಿಗೆ ಧನ್ಯವಾದ ಅರ್ಪಿಸಿದರು.

ಅಂತೆಯೇ, ಯಾವುದೇ ವ್ಯಕ್ತಿ ಸೋಮವಾರದ ಉಪವಾಸವನ್ನು ಅಥವಾ ಶಿವನ ಆರಾಧನೆಯನ್ನು ಮನಃಪೂರ್ವಕವಾಗಿ ಮಾಡಿದರೆ ಅವರು ಮಹಾದೇವನ ಅಪಾರ ಅನುಗ್ರಹವನ್ನು ಪಡೆಯುತ್ತಾರೆ. ಭಗವಾನ್ ಶಿವನು ಖಂಡಿತವಾಗಿಯೂ ತನ್ನ ಭಕ್ತರ ಎಲ್ಲಾ ಆಸೆಗಳನ್ನು ಪೂರೈಸುತ್ತಾನೆ. ಓಂ ನಹಃ ಶಿವಾಯ! ಜೈ ಮಹಾದೇವ್!

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ଏକଦା ସେଠାରେ ଜଣେ ଧନୀ ଟଙ୍କାଧାରୀ ରହୁଥିଲେ | ତାଙ୍କର ଧନ ଏବଂ ସାମଗ୍ରୀକ ଆରାମ ଥିଲା | କିନ୍ତୁ କେବଳ ଗୋଟିଏ ଯନ୍ତ୍ରଣା ଯାହା ସେ ନି less ସନ୍ତାନ ଥିଲେ ତାଙ୍କ ହୃଦୟକୁ ଉତ୍ତେଜିତ କଲା | ସେ ଏବଂ ତାଙ୍କ ପତ୍ନୀ ଅତିଶୟ ଚାହୁଁଥିଲେ ଯେ କ child ଣସି ପିଲା ଯାହାକି ସେମାନଙ୍କ ବଂଶ ଜାରି ରଖିବ | କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କ ଭାଗ୍ୟରେ କ child ଣସି ପିଲା ନଥିଲେ। ସେ ଶିବଙ୍କର ଜଣେ ମହାନ ଭକ୍ତ ଥିଲେ ଏବଂସେ ପ୍ରତି ସୋମବାର ଶିବ ମନ୍ଦିର ପରିଦର୍ଶନ କରୁଥିଲେ। ଦିନେ ଦେବୀ ପାର୍ବତୀ (ଶିବଙ୍କ ସହଯୋଗୀ) ଶିବଙ୍କୁ ସେହି ଭକ୍ତଙ୍କ ପ୍ରାର୍ଥନା ଶୁଣିବାକୁ ଅନୁରୋଧ କଲେ। ଭକ୍ତଙ୍କର ଗଭୀର ଭକ୍ତି ଦେଖି ପ୍ରଭୁ ମହାଦେବ ତାଙ୍କୁ ଏକ ପୁରୁଷ ସନ୍ତାନ ସହିତ ଆଶୀର୍ବାଦ କଲେ | କିନ୍ତୁ ଉପହାରଟି ଏକ ସର୍ତ୍ତ ସହିତ ଦିଆଯାଇଥିଲା ଯେ ପିଲାଟି କେବଳ 12 ବର୍ଷ ବଞ୍ଚିବ | ସେହି ଶିଶୁର ଜନ୍ମ ପରେ, ଟଙ୍କାଦାତା ବ୍ୟତୀତ ସମସ୍ତେ ପ୍ରକୃତରେ ଖୁସି ଥିଲେ କାରଣ ସେ ଜାଣିଥିଲେ ଯେ ତାଙ୍କ ପୁଅକୁ ମାତ୍ର 12 ବର୍ଷ | 11 ବର୍ଷପରେ, ender ଣଦାତା ତାଙ୍କ ଶିକ୍ଷା ସମାପ୍ତ କରିବାକୁ କାଶୀରେ ଥିବା ତାଙ୍କ ମାମୁଁଙ୍କ ଘରକୁ ପଠାଇବାକୁ ଚିନ୍ତା କରିଥିଲେ। ଟଙ୍କାଧାରୀ ତାଙ୍କ ପିଲାଙ୍କ ମୃତ୍ୟୁ ବିଷୟରେ ଜାଣିଥିଲେ। କିନ୍ତୁ ସେ କେବେବି ଶିବଙ୍କ ପ୍ରତି ତାଙ୍କର ଭକ୍ତି ଭାଙ୍ଗି ନଥିଲେ। ସେ ବାସ୍ତବରେ ତାଙ୍କ ପିଲା ଏବଂ ଶିଶୁର ମାତା ମାମୁଁଙ୍କୁ ଶିବଙ୍କୁ ୟାଙ୍ଗିଆ, ପୂଜା ଅର୍ପଣ କରିବାକୁ ପରାମର୍ଶ ଦେଇଥିଲେ। ମାଆ ମାମୁଁ ଏବଂ ପୁଅ ଘରକୁ ଯିବା ବାଟରେ |ଆରମ୍ଭ ହେଲା | ଏବଂ ସମସ୍ତ ସମ୍ଭାବ୍ୟ ମନ୍ଦିରରେ ଏବଂ ବ୍ରାହ୍ମଣମାନଙ୍କୁ ଯୋଗ, ଉପାସନା ଏବଂ ଦାନ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ | ତାଙ୍କ ଯାତ୍ରା ସମୟରେ ସେ ଏକ ବିବାହ ସମାରୋହ ଦେଖିଲେ | ଏବଂ ସମାରୋହରେ ବରର ଗୋଟିଏ ଆଖିରେ ଥିବା ତ୍ରୁଟି ହେତୁ ସ luck ଭାଗ୍ୟବଶତ this ଏହି ପୁଅ ବର ହୋଇ ଜଣେ ଧନୀ ବ୍ୟବସାୟୀଙ୍କ girl ିଅକୁ ବିବାହ କଲା | କିନ୍ତୁ ପିଲାଟି ଅଧ୍ୟୟନ ଶେଷ କରିବା ପାଇଁ ତାଙ୍କ ମାମୁଁଙ୍କ ସହ ଯିବାକୁ ପଡିଲା, ତେଣୁ ସେ କାଶୀକୁ ଗଲେ | ଦିନେ ଜଣେ ମାମୁଁ ଜଣେ ବ୍ରାହ୍ମଣଙ୍କୁ ଯୋଗ, ଉପାସନା ଏବଂ ଦାନ ଦେବା ପବିତ୍ର ଅଟେସମାରୋହର ଆୟୋଜନ କରୁଥିବାବେଳେ ବାଳକ ଅସୁସ୍ଥ ଅନୁଭବ କରିଥିଲେ। ଏବଂ ଅସୁସ୍ଥତା ହେତୁ ତାଙ୍କ ମାମୁଁ ତାଙ୍କୁ ବିଶ୍ରାମ ନେବାକୁ ଏବଂ କୋଠରୀରେ ଖସିଯିବାକୁ କହିଥିଲେ। କିନ୍ତୁ ବାଳକ ଦ୍ୱାଦଶ ବର୍ଷ ପୂରଣ କଲାବେଳେ ସେ ନିଜ ଜୀବନ ବିତାଇଲେ |ପରିତ୍ୟାଗ କଲା ଯେତେବେଳେ ତାଙ୍କ ମାମୁଁ ତାଙ୍କୁ ମୃତ ବୋଲି ଦେଖି ସେ ଯନ୍ତ୍ରଣା ଭୋଗୁଥିଲେ କିନ୍ତୁ ପ୍ରଥମେ ପବିତ୍ର ସମାରୋହ ସମାପ୍ତ କରିବାକୁ ଚିନ୍ତା କଲେ | ସ Fort ଭାଗ୍ୟବଶତ Mata ମାତା ପାର୍ବତୀ ଏବଂ ଭଗବାନ ଶିବ ସେମାନଙ୍କ ଘର ଦେଇ ଯାଉଥିଲେ ଏବଂ ସମସ୍ତ ସମ୍ପର୍କୀୟଙ୍କ କାନ୍ଦୁଥିବା ଦେଖିଥିଲେ। ବାଳକ, ତାଙ୍କ ପିତାମାତା ଏବଂ ମାତା ମାମୁଁ ଶିବଙ୍କ ପ୍ରତି ବହୁତ ଭକ୍ତି କରନ୍ତି |ଅପାର ପୂଜନୀୟ କାର୍ଯ୍ୟ ପ୍ରଦର୍ଶନ କରି ଶିବ ଏବଂ ଦେବୀ ପାର୍ବତୀ ପୁଣି ଥରେ ବାଳକକୁ ଜୀବନ ପ୍ରଦାନ କଲେ | ଏବଂ ପିଲାଟି ବର ସହିତ ଘରକୁ ଫେରିଗଲା | ତାଙ୍କୁ ଜୀବନ୍ତ ପାଇ ତାଙ୍କ ପିତାମାତା ଖୁସି ହୋଇଥିଲେ ଏବଂସେ ମହାଦେବଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ ଦେଇଥିଲେ। ସେ ନିଜ ଜୀବନ ତ୍ୟାଗ କଲେ। ଯେତେବେଳେ ତାଙ୍କ ମାମୁଁ ତାଙ୍କୁ ମୃତ ବୋଲି ଦେଖି ସେ ଯନ୍ତ୍ରଣା ଭୋଗୁଥିଲେ କିନ୍ତୁ ପ୍ରଥମେ ପବିତ୍ର ସମାରୋହ ସମାପ୍ତ କରିବାକୁ ଚିନ୍ତା କଲେ | ସ Fort ଭାଗ୍ୟବଶତ Mata ମାତା ପାର୍ବତୀ ଏବଂ ଭଗବାନ ଶିବ ସେମାନଙ୍କ ଘର ଦେଇ ଯାଉଥିଲେ ଏବଂ ସମସ୍ତ ସମ୍ପର୍କୀୟଙ୍କ କାନ୍ଦୁଥିବା ଦେଖିଥିଲେ। ବାଳକ, ତାଙ୍କରଯେହେତୁ ପିତାମାତା ଏବଂ ମାତା ମାମୁଁ ଶିବଙ୍କ ପ୍ରତି ଅତ୍ୟଧିକ ଭକ୍ତି ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଥିଲେ ଏବଂ ଅନେକ ପୂଜାପାଠ କରିଥିଲେ, ଶିବ ଏବଂ ଦେବୀ ପାର୍ବତୀ ପୁନର୍ବାର ବାଳକକୁ ଜୀବନ ଦେଇଥିଲେ। ଏବଂ ପିଲାଟି ବର ସହିତ ଘରକୁ ଫେରିଗଲା | ସେ ଅଟେତାଙ୍କୁ ଜୀବନ୍ତ ପାଇ ତାଙ୍କ ପିତାମାତା ଖୁସି ହୋଇ ମହାଦେବଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ ଦେଇଥିଲେ। ସେ ନିଜ ଜୀବନ ତ୍ୟାଗ କଲେ। ଯେତେବେଳେ ତାଙ୍କ ମାମୁଁ ତାଙ୍କୁ ମୃତ ଦେଖିଲେ ସେ ଯନ୍ତ୍ରଣା ଭୋଗୁଥିଲେ କିନ୍ତୁ ପ୍ରଥମେ ପବିତ୍ର ସମାରୋହ ସମାପ୍ତ କରିଥିଲେ |ଭାବିଲି | ସ Fort ଭାଗ୍ୟବଶତ Mata ମାତା ପାର୍ବତୀ ଏବଂ ଭଗବାନ ଶିବ ସେମାନଙ୍କ ଘର ଦେଇ ଯାଉଥିଲେ ଏବଂ ସମସ୍ତ ସମ୍ପର୍କୀୟଙ୍କ କାନ୍ଦୁଥିବା ଦେଖିଥିଲେ। ବାଳକ, ତାଙ୍କ ପିତାମାତା ଏବଂ ମାତା ମାମୁଁ ଶିବଙ୍କ ପ୍ରତି ଅତ୍ୟଧିକ ଭକ୍ତି ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଥିଲେ ଏବଂ ଅନେକ ପୂଜାପାଠ କରିଥିଲେ, ଶିବ ଏବଂ ଦେବୀ ପାର୍ବତୀ ପୁଣି ଥରେ ବାଳକକୁ ଜୀବନ ଦେଇଥିଲେ। ଏବଂ ପିଲାଟି ବର ସହିତ ଘରକୁ ଫେରିଗଲା | ସେ ଜୀବିତ ଥିବା ଜାଣିବାକୁ ପାଇଲେପିତାମାତା ଖୁସି ହୋଇ ମହାଦେବଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ ଦେଇଥିଲେ। ଏବଂ ଯେହେତୁ ମାତା ମାମୁଁ ଭଗବାନ ଶିବଙ୍କ ପ୍ରତି ଅତ୍ୟଧିକ ଭକ୍ତି ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଥିଲେ ଏବଂ ଅପାର ଧାର୍ମିକ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ କରିଥିଲେ, ଶିବ ଏବଂ ଦେବୀ ପାର୍ବତୀ ପୁଣି ଥରେ ବାଳକକୁ ଜୀବନ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ। ଏବଂ ପିଲାଟି ବର ସହିତ ଘରକୁ ଫେରିଗଲା | ତାଙ୍କ ପିତାମାତା ତାଙ୍କୁ ଜୀବନ୍ତ ଦେଖିଥିଲେଖୁସି ହୋଇ ମହାଦେବଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ ଜଣାଇଲେ | ଏବଂ ଯେହେତୁ ମାତା ମାମୁଁ ଭଗବାନ ଶିବଙ୍କ ପ୍ରତି ଅତ୍ୟଧିକ ଭକ୍ତି ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଥିଲେ ଏବଂ ଅପାର ଧାର୍ମିକ କାର୍ଯ୍ୟ କରିଥିଲେ, ଶିବ ଏବଂ ଦେବୀ ପାର୍ବତୀ ପୁଣି ଥରେ ବାଳକକୁ ଜୀବନ ପ୍ରଦାନ କରିଥିଲେ। ଏବଂ ପିଲାଟି ବର ସହିତ ଘରକୁ ଫେରିଗଲା | ତାଙ୍କୁ ଜୀବନ୍ତ ଦେଖି ତାଙ୍କ ପିତାମାତା ଖୁସି ହୋଇ ମହାଦେବଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ ଦେଇଥିଲେ।ସେହିଭଳି, ଯେକ person ଣସି ବ୍ୟକ୍ତି ସୋମବାର ଉପବାସ କରନ୍ତି କିମ୍ବା ଭଗବାନ ଶିବଙ୍କୁ ପୂଜାପାଠ କରନ୍ତି, ସେ ମହାଦେବଙ୍କ ଅପାର ଅନୁଗ୍ରହ ପାଇବେ | ଭଗବାନ ଶିବ ନିଶ୍ଚିତ ଭାବରେ ତାଙ୍କ ଭକ୍ତମାନଙ୍କର ସମସ୍ତ ଇଚ୍ଛା ପୂରଣ କରନ୍ତି | ଓମ୍ ନାହା ଶିବୟା! ଜୟ ମହାଦେବ!

16 somvar vrat katha in odia
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16 somvar vrat katha in telugu | 16 somvar vrat story

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ఒకసారి శివుడు, పార్వతితో ప్రయాణిస్తూ, మర్త్యలోకంలోని అమరావతి నగరానికి చేరుకున్నాడు. ఆ నగరానికి చెందిన రాజు ఒక పెద్ద శివాలయాన్ని నిర్మించాడు. ఆ గుడిలో శివపార్వతులు నివసించడం ప్రారంభించారు. ఒకరోజు పార్వతి శివుడిని ఇలా అడిగింది- ‘ఓ ప్రాణాత్! ఈ రోజు నేను బ్యాక్‌గామన్ ఆడాలని భావిస్తున్నాను.’ పార్వతి కోరిక తెలుసుకున్న శివుడు పార్వతితో బ్యాక్‌గామన్ ఆడటానికి కూర్చున్నాడు. ఆట మొదలుకాగానే ఆ గుడి పూజారి అక్కడికి వచ్చాడు. తల్లి పార్వతి జీ పూజారిని అడిగింది – ఓ పూజారి! ఈ పందెంలో ఎవరు గెలుస్తారో చెప్పండి? బ్రాహ్మణుడు అన్నాడు – మహాదేవ్ జీ. కానీ చౌసర్‌లో శివ్‌జీ ఓడిపోయి పార్వతి మాత విజయం సాధించారు. అప్పుడు అబద్ధం చెప్పిన నేరానికి బ్రాహ్మణుడిని కుష్ఠురోగిగా మారమని శపించాడు. శివుడు మరియు పార్వతి ఆ ఆలయం నుండి కైలాస పర్వతానికి తిరిగి వచ్చారు. పార్వతి జీ శాపం కారణంగా, పూజారి కుష్టురోగి అయ్యాడు. నగరంలోని స్త్రీ పురుషులు ఆ పూజారి నీడకు కూడా దూరంగా ఉండడం ప్రారంభించారు. పూజారి కుష్ఠురోగిగా మారాడని కొందరు రాజుకు ఫిర్యాదు చేయగా, రాజు ఏదో పాపం వల్ల పూజారి కుష్టురోగిగా మారాడని భావించి అతన్ని ఆలయం నుండి బయటకు పంపాడు. అతని స్థానంలో మరో బ్రాహ్మణుడిని పూజారిగా నియమించారు. కుష్ఠురోగి పూజారి గుడి బయట కూర్చొని వేడుకున్నాడు.చాలా రోజుల తరువాత, స్వర్గం నుండి కొంతమంది అప్సరసలు ఆ ఆలయానికి వచ్చారు మరియు అతనిని చూసి కారణం అడిగారు. పూజారి సంకోచం లేకుండా శివుడు మరియు పార్వతీజీ బ్యాక్‌గామన్ ఆడటం మరియు పార్వతీజీ శపించడం యొక్క మొత్తం కథను వారికి చెప్పాడు. అప్పుడు అప్సరసలు పురోహితుడిని పదహారు సోమవారాలు అడిగారు. లాంఛనంగా ఉపవాస దీక్షలు చేపట్టాలని కోరారు. పూజా విధానం గురించి పూజారి అడగ్గా, అప్సరసలు చెప్పారు – ‘సోమవారం నాడు సూర్యోదయానికి ముందే నిద్రలేచి, స్నానం చేసి, శుభ్రమైన బట్టలు ధరించి, అర పావుల గోధుమ పిండిని తీసుకుని మూడు భాగాలు చేయండి. తర్వాత నెయ్యి దీపం వెలిగించి, బెల్లం, నైవేద్యం, బేల్పత్రం, గంధం, అక్షతం, పుష్పాలు మరియు ఒక జత పవిత్ర దారంతో ప్రదోష కాలంలో శివుడిని పూజించాలి. పూజానంతరం, మూడు అవయవములలో ఒకదానిని శివునికి సమర్పించి, ఆపై ఒకటి తీసుకోవాలి. మిగిలిన రెండు శరీర భాగాలను భగవంతుని ప్రసాదంగా పరిగణించి, అక్కడ ఉన్న పురుషులు, మహిళలు మరియు పిల్లలకు పంచండి. ఈ విధంగా పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉంటే, పదిహేడవ సోమవారం నాడు పిండి, నెయ్యి, బెల్లం కలిపి చుర్మా చేయాలి. అప్పుడు భగవంతుడు శివునికి ఆహారాన్ని సమర్పించిన తరువాత, అక్కడ ఉన్న పురుషులు, మహిళలు మరియు పిల్లలకు ప్రసాదాన్ని పంచండి. పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉండి, ఉపవాసం యొక్క కథను వినడం ద్వారా, శివుడు మీ కుష్టు వ్యాధిని నశింపజేస్తాడు మరియు మీ కోరికలన్నీ తీరుస్తాడు. ఇలా చెప్పి అప్సరసలు స్వర్గానికి వెళ్లారు.అప్సరసల సూచనల మేరకు పూజారి పదహారు సోమవారాలు వ్రతాన్ని పాటించాడు. తత్ఫలితంగా, శివుని దయ కారణంగా, అతని కుష్టు వ్యాధి నయమైంది. రాజు మళ్లీ అతణ్ని ఆలయ పూజారిగా నియమించాడు. దేవాలయంలో శివుని పూజిస్తూ సంతోషకరమైన జీవితాన్ని గడపడం ప్రారంభించాడు. కొన్ని రోజుల తర్వాత, మళ్లీ భూలోకంలో పర్యటిస్తూ, శివుడు మరియు పార్వతి ఆ ఆలయానికి చేరుకున్నారు. ఆరోగ్యంగా ఉన్న పూజారిని చూసి, పార్వతి ఆశ్చర్యపోయి, అతను వ్యాధి నుండి బయటపడటానికి కారణం అడిగాడు, అప్పుడు పూజారి ఆమెకు పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం యొక్క మొత్తం కథను చెప్పాడు. పార్వతి జీ కూడా ఉపవాసం గురించి విని చాలా సంతోషించారు మరియు పూజారిని దాని పద్ధతి గురించి అడిగిన తర్వాత, ఆమె స్వయంగా పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ప్రారంభించింది. ఆ రోజుల్లో, పార్వతి జీ తన కొడుకు కార్తికేయ కోపంతో వెళ్లిపోవడం గురించి చాలా ఆందోళన చెందింది. ఆమె కార్తికేయను తిరిగి తీసుకురావడానికి ప్రయత్నించింది. ఆమె చాలా చర్యలు తీసుకుంది, కానీ కార్తికేయ తన వద్దకు తిరిగి రావడం లేదు. పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉండగా, పార్వతి తిరిగి కార్తికేయుడు కోసం శివుడిని ప్రార్థించింది. నిజానికి ఉపవాసం ముగిసిన మూడో రోజున కార్తికేయ తిరిగి వచ్చాడు.కార్తికేయ తన మనసు మార్చుకోవడం గురించి పార్వతీజీని అడిగాడు – ‘ఓ తల్లీ! ‘నా కోపాన్ని నశింపజేసి నేను తిరిగి రావడానికి మీరు ఏ పరిహారం తీసుకున్నారు?’ అప్పుడు పార్వతీజీ కార్తికేయుడికి పదహారు సోమవార ఉపవాసాల కథను చెప్పారు. తన బ్రాహ్మణ మిత్రుడు బ్రహ్మదత్ విదేశాలకు వెళ్లినప్పుడు కార్తీకేయుడు చాలా బాధపడ్డాడు. అతన్ని తిరిగి తీసుకురావడానికి, కార్తికేయ పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉండి, బ్రహ్మదత్ తిరిగి రావాలని కోరుకున్నాడు. ఉపవాసం ముగిసిన కొన్ని రోజుల తర్వాత, స్నేహితుడు తిరిగి వచ్చాడు. బ్రాహ్మణుడు కార్తికేయునితో అన్నాడు- ‘ప్రియ మిత్రమా! ‘విదేశాల్లో ఉన్నప్పుడు నా ఆలోచనలను పూర్తిగా మార్చివేసి, నిన్ను గుర్తుచేసుకుంటూ తిరిగొచ్చిన మీరు ఏ కొలత తీసుకున్నారు?’ కార్తికేయ కూడా పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం యొక్క కథ మరియు పద్ధతిని తన స్నేహితుడికి వివరించాడు. ఉపవాసం గురించి విన్న బ్రాహ్మణ స్నేహితుడు చాలా సంతోషించాడు, అతను కూడా ఉపవాసం ఉన్నాడు.పదహారు సోమవారాల ఉపవాసం ముగించుకుని బ్రహ్మదత్ విదేశీ యాత్రకు బయలుదేరాడు. అక్కడ, నగర రాజు రాజా హర్షవర్ధన్ కుమార్తె, యువరాణి గుంజన్ స్వయంవరం జరుగుతోంది. అక్కడి రాజు ఏనుగు ఆమె మెడలో ఈ మాల వేస్తానని, తన కూతురిని పెళ్లి చేసుకుంటానని హామీ ఇచ్చాడు. అతడిని పెళ్లి చేసుకుంటా. బ్రాహ్మణుడు కూడా ఉత్సుకతతో రాజభవనానికి వెళ్ళాడు. అనేక రాజ్యాల రాకుమారులు అక్కడ కూర్చున్నారు. అకస్మాత్తుగా అలంకరించబడిన ఏనుగు తన తొండంలో ఒక దండను పట్టుకుని అక్కడికి వచ్చింది. ఏనుగు ఆ దండను బ్రాహ్మణుని మెడలో వేసింది. ఫలితంగా యువరాణి బ్రాహ్మణుడిని వివాహం చేసుకుంది.ఒకరోజు అతని భార్య అడిగింది- ‘ఓ ప్రణన్నా! ఏనుగు రాకుమారులను విడిచిపెట్టి నీ మెడలో దండ వేసేటటువంటి పుణ్యకార్యం ఏమిటి? బ్రాహ్మణుడు పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం చేసే విధానాన్ని చెప్పాడు. తన భర్త నుండి పదహారు సోమవారాల ప్రాముఖ్యతను తెలుసుకున్న యువరాణి తన కొడుకు కోరికతో పదహారు సోమవారాలు వ్రతం చేసింది. ఒకానొక సమయంలో, శివుని దయతో, యువరాణికి అందమైన, మంచి ప్రవర్తన కలిగిన మరియు ఆరోగ్యవంతమైన కుమారుడు జన్మించాడు. కొడుకుకి గోపాల్ అని పేరు పెట్టారు.

పెద్దయ్యాక కొడుకు గోపాల్ కూడా ఒకరోజు తన తల్లిని అడిగాడు, నేను మీ ఇంట్లో పుట్టడానికి కారణం ఏమిటి. తల్లి గుంజన్ పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం గురించి తన కొడుకుకు తెలియజేసింది. ఉపవాసం యొక్క ప్రాముఖ్యతను తెలుసుకున్న గోపాల్ కూడా ఉపవాసం పాటించాలని సంకల్పించాడు. గోపాల్‌కి పదహారేళ్లు నిండినప్పుడు, రాజ్యాన్ని పొందాలనే కోరికతో పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం పాటించాడు. ఉపవాసం ముగించుకుని, గోపాల్ నడక కోసం సమీపంలోని పట్టణానికి వెళ్లాడు. అక్కడి ముసలి రాజు గోపాల్‌ని ఇష్టపడి ఎంతో వైభవంగా తన కుమార్తె యువరాణి మంగళను గోపాల్‌కిచ్చి వివాహం చేశాడు. పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉండి, గోపాల్ రాజభవనానికి చేరుకుని సంతోషంగా జీవించడం ప్రారంభించాడు.రెండు సంవత్సరాల తరువాత, పాత రాజు మరణించడంతో, గోపాల్ ఆ నగరానికి రాజుగా నియమించబడ్డాడు. ఈ విధంగా పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉండడం వల్ల గోపాలుని రాజ్యాన్ని పొందాలన్న కోరిక నెరవేరింది. రాజు అయిన తర్వాత కూడా పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం కొనసాగించాడు. ఉపవాసం ముగిసే సమయానికి, పదిహేడవ సోమవారం, గోపాల్ తన భార్య మంగళను ఉపవాసానికి కావలసిన సామాగ్రితో సమీపంలోని శివాలయానికి చేరుకోమని కోరాడు.భర్త ఆజ్ఞను బేఖాతరు చేస్తూ పూజా సామాగ్రిని సేవకుల ద్వారా గుడికి పంపి తాను గుడికి వెళ్లలేదు. రాజు శివుని ఆరాధన పూర్తి చేసినప్పుడు, ఆకాశం నుండి ఒక స్వరం వినిపించింది – ‘ఓ రాజా! మీ రాణి పదహారు సోమవారాల ఉపవాసాన్ని అగౌరవపరిచింది. కాబట్టి రాణిని రాజభవనం నుండి తరిమికొట్టండి, లేకపోతే మీ కీర్తి అంతా నాశనం అవుతుంది. ఆకాశవాణి వినిపించిన వెంటనే రాజభవనానికి చేరుకుని, రాణిని దూరంగా ఉన్న ఏదో ఒక నగరంలో విడిచిపెట్టమని తన సైనికులను ఆదేశించాడు. సైనికులు రాజు ఆదేశాలను పాటించి వెంటనే ఆమెను ఇంటి నుండి బయటకు పంపారు. రాణి ఆకలితో, దాహంతో ఆ నగరంలో తిరగడం ప్రారంభించింది. ఆ నగరంలో రాణికి ఒక వృద్ధురాలు కనిపించింది. ఆ వృద్ధురాలు నూలు వడకట్టి బజారులో అమ్మేందుకు వెళ్తుండగా, ఆ వృద్ధురాలు దారం పైకి రావడం లేదు. వృద్ధురాలు రాణితో ఇలా చెప్పింది – ‘కూతురా! మీరు నా నూలును తీసుకొని మార్కెట్‌కి తీసుకెళ్లి నూలు అమ్మడంలో నాకు సహాయం చేస్తే, నేను మీకు డబ్బు ఇస్తాను.వృద్ధురాలి సలహాకు రాణి అంగీకరించింది. అయితే రాణి నూలు కట్టను తాకగానే బలమైన తుఫాను వీచడంతో ఆ కట్ట తెరిచి చూడగానే ఆ నూలు మొత్తం తుపానులో ఎగిరిపోయింది. వృద్ధురాలు ఆమెను మందలించి అక్కడి నుంచి పంపింది. రాణి నగరంలోకి నడిచింది. ఒక నూనె వ్యాపారి ఇంటికి చేరుకున్నాడు. జాలితో, నూనెవాడు రాణిని ఇంట్లో ఉండమని కోరాడు, కాని శివుని కోపంతో నూనెతో నిండిన కుండలు ఒక్కొక్కటిగా పగిలిపోవడం ప్రారంభించాయి, నూనెవాడు కూడా పారిపోయాడు.ఆకలి, దాహంతో విలవిలలాడిన రాణి అక్కడి నుంచి ముందుకు కదిలింది. రాణి ఒక నది నుండి నీరు త్రాగి దాహం తీర్చుకోవడానికి ప్రయత్నించినప్పుడు, ఆమె స్పర్శకు నది నీరు ఎండిపోయింది. తన విధిని శపిస్తూ రాణి ముందుకు సాగింది. నడుస్తూ ఉండగా రాణి ఒక అడవికి చేరుకుంది. ఆ అడవిలో ఒక చెరువు ఉండేది. అందులో ఒక చెరువు ఉండేది. అది నీళ్లతో నిండిపోయింది. స్వచ్ఛమైన నీటిని చూసి రాణికి దాహం పెరిగింది. ఆమె నీళ్లు తాగడం ప్రారంభించింది. ఆమె చెరువు మెట్లు దిగి నీటిని తాకగానే ఆ నీటిలో లెక్కలేనన్ని క్రిములు కనిపించాయి. రాణి బాధపడి మురికి నీరు తాగింది. తాగి నా దాహం తీర్చింది.రాణి చెట్టు నీడలో కూర్చుని కొంతసేపు విశ్రాంతి తీసుకోవాలనుకున్నప్పుడు, ఆ చెట్టు ఆకులు క్షణాల్లో ఎండిపోయి చెల్లాచెదురుగా పడ్డాయి. రాణి వెళ్లి మరొక చెట్టు కింద కూర్చుంది, ఆమె కూర్చున్న చెట్టు ఎండిపోయింది. అడవి మరియు సరస్సు యొక్క ఈ పరిస్థితిని చూసి, అక్కడ ఉన్న గోరక్షకులు చాలా ఆశ్చర్యపోయారు. ఆవుల కాపరులు రాణిని సమీపంలోని గుడిలోని పూజారి వద్దకు తీసుకెళ్లారు. రాణి ముఖం చూడగానే రాణి ఖచ్చితంగా పెద్ద కుటుంబానికి చెందినదని పూజారికి తెలిసింది. అదృష్టం వల్ల -రేటు తిరుగుతోంది.పూజారి రాణితో ఇలా అన్నాడు- ‘కుమారీ! చింతించకు, ఈ గుడిలో నాతో ఉండు. మరికొద్ది రోజుల్లో అంతా సర్దుకుపోతుంది. పూజారి మాటలకు రాణికి చాలా ఊరట లభించింది. రాణి ఆ గుడిలో నివసించడం ప్రారంభించింది. ఆమె ఆహారం వండినప్పుడల్లా, కూరగాయలు కాలిపోతాయి మరియు కీటకాలు పిండిలోకి వస్తాయి. నీటి వాసన మొదలవుతుంది. పూజారి కూడా రాణి యొక్క దురదృష్టానికి చాలా చింతించి ఇలా అన్నాడు – ‘ఓ కుమార్తె! దేవతలు మీపై కోపించి, వారి అసంతృప్తి కారణంగా మీరు ఖచ్చితంగా ఏదో తప్పు చేసారు. పూజారి మాటలు విన్న రాణి తన భర్త ఆజ్ఞతో గుడికి వెళ్లకుండా, శివపూజ చేయకపోవడాన్ని గురించిన కథంతా చెప్పింది.పూజారి అన్నాడు – ‘ఇప్పుడు నువ్వు చింతించకు. రేపు సోమవారం మరియు రేపటి నుండి మీరు పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ప్రారంభించండి. శివుడు తప్పకుండా నీ పాపాలను క్షమిస్తాడు.’ పూజారి మాటలు విని రాణి పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ప్రారంభించింది. రాణి సోమవారము వ్రతమును ఆచరించి, ఆచారాల ప్రకారం శివుని పూజించి, ఉపవాస కథ వినడం ప్రారంభించింది. రాణి పదిహేడవ సోమవారం ఉపవాసం ముగించినప్పుడు, ఆమె భర్త రాజు ఆమెను జ్ఞాపకం చేసుకున్నాడు. రాజు వెంటనే తన సైనికులను పంపి రాణిని వెతికి తీసుకురావడానికి పంపాడు.రాణి కోసం వెతుకుతున్నప్పుడు, సైనికులు ఆలయానికి చేరుకుని రాణిని తిరిగి రమ్మని అడిగారు, పూజారి సైనికులను తిరస్కరించారు మరియు సైనికులు నిరాశతో తిరిగి వచ్చారు, వారు తిరిగి వచ్చి కథ మొత్తం రాజుకు చెప్పారు. రాజు స్వయంగా ఆ గుడిలోని పూజారి వద్దకు చేరుకుని, రాణిని రాజభవనం నుండి బయటకు పంపినందుకు పూజారిని క్షమించమని వేడుకున్నాడు. పూజారి రాజుతో చెప్పాడు – ‘ఇదంతా శివుని ఆగ్రహానికి గురైంది. ఇలా చెప్పి రాణికి వీడ్కోలు పలికాడు.రాణి రాజుతో కలిసి రాజభవనానికి చేరుకుంది. ప్యాలెస్‌లో చాలా వేడుకలు జరిగాయి. నగరమంతా అలంకరించారు. రాజు బ్రాహ్మణులకు ఆహారం, బట్టలు మరియు డబ్బును దానం చేశాడు. నగరంలోని పేదలకు దుస్తులు పంపిణీ చేశారు. రాణి పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉండి రాజభవనంలో సంతోషంగా జీవించడం ప్రారంభించింది. పరమశివుని అనుగ్రహం వల్ల ఆమె జీవితం సుఖసంతోషాలతో నిండిపోయింది. పదహారు సోమవారాలు ఉపవాసం ఉండి కథలు వినడం వల్ల మనిషి కోరుకున్న కోరికలన్నీ నెరవేరుతాయి, జీవితంలో దేనికీ లోటు ఉండదు. స్త్రీపురుషులు సుఖముగా జీవించి ముక్తిని పొందుతారు.

16 somvar vrat benefits | 16 सोमवार व्रत के फायदे | 16 somvar vrat ke fayede | 16 somvar vrat rules in hindi | 16 somvar vrat experiences

16 somvar vrat fayede bahut sare hain. 16 सोमवार व्रत के फायदे ये हैं कि इस मन को शांति मिलती है, अच्छे विचार आते हैं, जिंदगी में सकारात्मकता, शांति, प्यार, सम्मान आता है। 16 somvar vrat ke labh मुझसे एक बात भी है कि इसे यदि पूर्ण श्रद्धा से किया जाए तो जैसे पार्वती माता ने शिव जी को पाया था वैसे हम भी अपने प्रेमी को पा सकते हैं, लेकिन मन से सच्ची भावना और शिव जी पर विश्वास होना चाहिए।

16 somvar vrat significance | 16 somvar vrat ka fal | 16 somvar vrat experiences

16 somvar vrat significance is that Lord Shiv fulfills all your wishes and desires and saves you from all mishappenings.

16 सोमवार व्रत का महत्व (16 somvar vrat ka fal ) यह है कि भगवान शिव आपकी सभी इच्छाओं और इच्छाओं को पूरा करते हैं और आपको सभी दुर्भाग्य से बचाते हैं।

16 सोमवार व्रत कथा aarti | 16 somvar vrat katha aarti |16 somvar vrat aarti in hindi |

जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें स्वामी जो कोई जन गावें
कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा

How many solah somvar vrat?

You can keep solah somvar vrat as many times as you want.

Who can do 16 somvar vrat?

According to 16 somvar vrat katha, anyone can do this vrat. Male/ Females, married/unmarried.

How to do 16 somvar vrat in marathi?

16 सोमवार व्रत करण्यासाठी दिवसभर उपवास करावा लागतो, मिठाशिवाय एक जेवण करावे आणि शिव आणि पार्वती मातेची पूजा करावी लागते. 16 सोमवार ते पुन्हा करा आणि 17 व्या सोमवारी समाप्त करा.

Can we do 16 somvar vrat ?

Yes, you can start 16 somvar vrat on any Monday.

When does 16 somvar vrat start?

Usually 16 somvar vrat starts on the first Monday of Shravan Month (July-August).

When is 16 somvar vrat in 2024 ?

16 somvar vrat 2024 date is August 19, 2024.

When is 16 somvar vrat in 2023 ?

16 somvar vrat 2023 can be started from Dec 5, 2023.

Does solah 16 somvar vrat work?

If fast is observed for 16 Mondays with true contemplation and faith then it is definitely successful and Lord Shiva definitely fulfills the wishes.

16 somvar vrat when to start ?

16 somvar vrat 2023 start date is Dec 5, 2023 and 16 somvar vrat 2024 start date is August 19, 2024.

16 somvar vrat benefits ?

16 somvar vrat benefits are good health, wealth, prosperity, good luck and positivity in life.

1 thought on “16 somvar vrat katha in hindi, english, marathi, telugu, odia, kannada and gujrati”

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