Rahat Indori Shayari In Hindi – राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी. मेरे प्रिय दोस्तों आज की इस शायरियों वाली पोस्ट में हम पड़ेगे Rahat Indori Shayari In Hindi यानि कि डॉ. राहत इंदौरी की शायरी के बारे में। दोस्तों राहत इंदौरी की शायरिओं प्रेम, दर्द, वतन, इन सबका जिक्र होता है।
वो कहते हैं न कि भाषा पर किसका जोर परन्तु हमारे देश में उर्दू भाषा पर डॉ. राहत इंदौरी का जोर था उन्होंने उर्दू भाषा में शायरी, कविता और गजलों को लिखा जिससे उन्होंने देश नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान बना ली।
उर्दू भाषा के विश्व प्रसिद्ध शायर डॉ राहत इंदौरी आज के समय के सबसे प्रतिष्ठित कवि, शायर और हिंदी फिल्म गीतकार में से एक हैं। वो एक महान शायर थे इंदौरी मेरे ही नहीं बल्कि पूरे देश के चहेते कवी, शायर गजलकर थे।
आज की इस महफ़िल में निचे राहत इंदौरी की मशहूर शायरियां व साथ ही कुछ मशहूर कवितायेँ, ग़ज़ल व् कविता New, Best, Latest, Two Line, Hindi, Urdu, Shayari, Sher, Ashaar, Collection, Shyari, नई, नवीनतम, लेटेस्ट, हिंदी, उर्दू, शायरी, शेर, नज़्म, अशआर, संग्रह के कुछ अंश पेश की गयी हैं।
अगर आप भी मेरी तरह राहत इन्दोरी की शायरियों और गजलों के दीवाने हैं और आप राहत इंदौरी की शायरी पढ़ना चाहते है तो हमारी Rahat Indori Shayari In Hindi – राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी की पोस्ट को पूरा पढ़े और उनकी शायरी एवं गजलों को पढ़कर आंनद लें।
Rahat Indori Shayari In Hindi – राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे
बहुत हसीन है दुनिया…
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
अंदर का ज़हर चूम लिया…
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मैं बच भी जाता तो…
किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए…
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें.
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें.
राहत इंदौरी की गजलें, कविताएँ, शायरी
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं।
हर रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है।
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है।
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं
मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ।
नए किरदार आते जा रहे हैं,
मगर नाटक पुराना चल रहा है।
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी।
एक चिंगारी नज़र आई थी…
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं।
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है..
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं।
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए,
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए।
फकीरी पे तरस आता है…
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे.
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
बोतलें खोल कर तो पी बरसों,
आज दिल खोल कर भी पी जाए।
दोस्ती जब किसी से की जाए।
दुश्मनों की भी राय ली जाए।
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन,
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो।
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे,
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मे यारी रखो।
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो
लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो
Rahat Indori Shayari In Hindi
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा,
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया।
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम,
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे।
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे,
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे।
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए,
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है।
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे,
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया,
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है।
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए,
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए।
अजनबी ख़्वाहिशें , सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ।
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते।
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं।
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं।
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं।
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं।
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें।
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम,
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें।
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए।
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए।
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया।
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए।
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं।
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं।
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी,
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।
इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया।
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया।
जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए,
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया।
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
राहत इंदौरी की प्रसिद्ध शायरियाँ
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ,
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे।
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ।
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ।
फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया,
ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ।
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना।
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना।
नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर
“राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना।
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ।
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ।
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं, लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ।
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था।
में बच भी जाता तो मरने वाला था।
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए,
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था।
इस से पहले की हवा शोर मचाने लग जाए।
मेरे “अल्लाह” मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाए।
घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को,
काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए।
साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता।
वो गले मुझ से किसी और बहाने लग जाए।
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए।
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए।
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए,
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए।
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया।
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया।
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं,
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया।
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं।
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं।
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो ,
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं।
यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं।
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान पढ़ते हैं।
यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं,
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं।
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
राहत इंदौरी की रोमांटिक शायरी
मेरे अपने मुझे मिट्टी में मिलाने आए।
अब कही जां के मेरे होश ठिकाने आए ।
तूने बालो में सजा रक्खा था कागज़ का गु-लाब,
मै ये समझा कि बहारो के ज़माने आए।
चाँद ने रात की दहलीज़ को बख्शे है चिराग़,
मेरे हिस्से में भी अश्को के खज़ाने आए।
दोस्त होकर भी महीनो नहीं मिलता मुझसे,
उससे कहना कि कभी जख्म लगाने आए।
फुरसते चाट रही है मेरी हस्ती का लहु,
मुंतज़िर हूँ कि कोई बुलाने आए।
अगर खिलाफ है होने दो, जान थोड़ी है।
ये सब धुआ है कोई आसमान थोड़ी है।
लगेगी आग तो आयेंगे घर कई जद में,
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।
मुझे खबर है के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन,
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है।
हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है।
हमारे मुह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है।
जो आज साहिबे मसनद है कल नहीं होंगे,
किरायेदार है ज़ाती, मकान थोड़ी है।
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में,
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है।
लूट मची है चारों ओर… सारे चोर,
इक जंगल और लाखों मोर… सारे चोर,
इक थैली में अफसर भी, चपरासी भी,
क्या ताकतवर, क्या कमजोर… सारे चोर।
उजले कुर्ते पहन रखे हैं, सांपों ने,
यह जहरीले आदमखोर… सारे चोर,
झूठ नगर में, रोज निकालो मौन जुलूस,
कौन सुनेगा सच का शोर… सारे चोर।
हम किस-किस का नाम गिनाए ‘राहत खां’
दिल्ली के आवारा ढोर… सारे चोर
तूफ़ानों से आँख मिलाओ,
सैलाबों पे वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो,
तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो,
ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ ख़ता है तो
ये ख़ता एक बार नहीं सौ बार करो।
ना हम-सफ़र ना किसी हम-नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा।
दोस्ती जब किसी से की जाये।
दुश्मनों की भी राय ली जाए।
बोतलें खोल के तो पि बरसों,
आज दिल खोल के पि जाए।
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
राहत इंदौरी की शायरियां – Rahat Indori Shayari In Hindi
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
सरहदों पर तनाव हे क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या
शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं
काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं
ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए
ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से
बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा
नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं
राहत इंदौरी की प्रशिद्ध शायरियां, कवितायेँ, गजलें
साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम
उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम
इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ
दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं
हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए
अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है
एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे
मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है
आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते
उंगलिया यु ना सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो
जिंदगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशो में पतंगे उडाया करो
दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नीम कि पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फकीरों को खाना खिलाया करो
चाँद सूरज कहा, अपनी मंजिल कहाँ
ऐसे वैसो को मुह मत लगाया करो
अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो
घर उसी का सही तुम भी हक़दार हो,
रोज़ आया करो रोज़ जाया करो।
Rahat Indori Shayari In Hindi – राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी
तूफ़ां तो इस शहर में अक्सर आता है
देखे अब के किस का नम्बर आता है
यारो के भी दांत बहुत ज़हरीले है
हमको भी सापों का मंतर आता है
बच कर रहना एक कातल इस बस्ती में
कागज़ की पोशाक पहन कर आता है
सुख चूका हूँ फिर भी मेरे साहिल पर
पानी पीने रोज़ समंदर आता है
फूल जैसे मखमली तलवों में छाले कर दिए
गोरे सूरज ने हजारों जिस्म काले कर दिए
प्यास अब कैसे बुझेगी हमने खुद ही भूल से
मैकदे कमजर्फ लोगो के हवाले कर दिए
देख कर तुझ को कोई मंजर ना देखा उम्र तलक
एक उजाले ने मेरी आँखों में जाले कर दिए
रौशनी के देवता को पूजता था कल तलक
आज घर की खिड़कियों के कांच काले कर दिए
जिंदगी का कोई भी तोहफा नहीं है मेरे पास
खून के आंसू तो गज़लों के हवाले कर दिए
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना
लोग हर मोड़ पे रूक रूक के संभलते क्यूँ है
इतना डरते है तो घर से निकलते क्यूँ है।
फूक़ डालूगा मैं किसी रोज़ दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है की जला भी न सकूं।
कही अकेले में मिलकर झंझोड़ दूँगा
उसे जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा
उसे मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैंने किया था की छोड़ दूँगा उसे।
जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तय्यारी से
अपनी हर साँस को नीलाम किया है मैं ने
लोग आसान हुए हैं बड़ी दुश्वारी से
ज़ेहन में जब भी तिरे ख़त की इबारत चमकी
एक ख़ुश्बू सी निकलने लगी अलमारी से
शाहज़ादे से मुलाक़ात तो ना-मुम्किन है
चलिए मिल आते हैं चल कर किसी दरबारी से
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हम ने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से
प्यास तो अपनी सात समन्दर जैसी थी,
ना हक हमने बारिश का अहसान लिया।
मैंने दिल दे कर उसे की थी
वफ़ा की इब्तिदा उसने धोखा दे के
ये किस्सा मुकम्मल कर दिया
शहर में चर्चा है आख़िर ऐसी लड़की कौन है
जिसने अच्छे खासे एक शायर को पागल कर दिया।
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी की ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे।
उस की याद आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनो से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।
मैं वो दरिया हूँ की हर बूंद भँवर है जिसकी,
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
दो ग़ज सही ये मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया।
हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रक्खा है
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रक्खा है
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है।
छू गया जब कभी ख़याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा।
कल तेरा जिक्र छिड़ गया था घर में
और घर देर तक महकता रहा।
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुए की तरह परबतों से उड़ते हैं,
ये कैंचियाँ हमें उड़ने से ख़ाक रोकेंगी,
के हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं.
बुलाती है मगर जाने का नईं
बुलाती है मगर जाने का नईं
वो दुनिया है उधर जाने का नईं
ज़मीं रखना पड़े सर पर तो रक्खो
चलो हो तो ठहर जाने का नईं
है दुनिया छोड़ना मंज़ूर लेकिन
वतन को छोड़ कर जाने का नईं
जनाज़े ही जनाज़े हैं सड़क पर
अभी माहौल मर जाने का नईं
सितारे नोच कर ले जाऊँगा
मैं ख़ाली हाथ घर जाने का नईं
मिरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नईं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर ज़ालिम से डर जाने का नईं
सड़क पर अर्थियाँ ही अर्थियाँ हैं
अभी माहौल मर जाने का नईं
वबा फैली हुई है हर तरफ़
अभी माहौल मर जाने का नईं
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प्रिय दोस्तों, में आशा करती हूँ की आपको Rahat Indori Shayari In Hindi – राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी को पढ़कर अच्छा लगा होगा. राहत इंदौरी शायरी – dr. Rahat Indori Shayari In Hindi ने आपको आनन्दित किया होगा.
आप हमें कमेंट करके बताएं कि आपको डॉ. राहत इंदौरी की इतनी शायरियों और गजलों में से कौन सी ग़ज़ल या शायरी पसंद आई. यदि आपको इस Rahat Indori Shayari In Hindi – राहत इंदौरी शायरी इन हिंदी की पोस्ट से सम्बंधित कोई भी समस्या है तो आप हमे Comments करके पूछ सकते है.
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